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दादाश्री : पुद्गल को तो नुकसान हो ही गया न !
प्रश्नकर्ता : लेकिन यदि वह जागृतिपूर्वक रहा तो उसका मुँह नहीं
बिगड़ा ।
सहजता
दादाश्री : कितनों को तो, अपमान हुआ या उसे गुस्सा आ गया तो खुद को पता चल जाता है । बाद में मैं पूछता हूँ कि आपको पता चला क्या? तब कहता है, हाँ ! पता चला। लेकिन वह छोड़ेगा किस तरह से? उसके बावजूद भी उसे छोड़ देना है । अंत में सहज ही करना है । वैसा सहज तो, जब बहुत समय तक सुनता रहेगा तब सहज होता जाएगा । जागृत की दृढ़ता के लिए
प्रश्नकर्ता : हमारी कमी कहाँ रह जाती है ?
दादाश्री : उतनी शक्ति, उतनी जागृति उत्पन्न नहीं हुई है । जागृति कमज़ोर है। हर क्षण की जागृति चाहिए। हमें एक क्षण भी कोई दोषित नहीं दिखाई देता। दोषित दिखने की वजह से ही तो ये सभी झंझटें हैं। क्योंकि यह विज्ञान ही ऐसा है । कोई दोषित है ही नहीं और अगर दोषित दिखाई देता है तो उपवास करना चाहिए। चंदूभाई से कहना कि उपवास करो।
प्रश्नकर्ता : दूसरे दिन कोई दोषित नहीं दिखाई देगा।
दादाश्री : दोषित है ही नहीं ।
प्रश्नकर्ता : उपवास करने के बाद फिर दूसरे दिन कोई दोषित नहीं दिखाई देगा?
दादाश्री : नहीं! आपको उपवास करने को कहा, उसका कारण क्या है कि उतनी मज़बूती रहनी चाहिए, स्ट्रिक्ट बनना चाहिए। स्ट्रिक्टनेस रखनी चाहिए, निर्दय नहीं बनना चाहिए ।
किसी के अहम् को दुभाना नहीं
प्रश्नकर्ता : उदाहरण के तौर पर इन्कम टैक्स में मेरी एक फाइल