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अंतःकरण में दखल किसकी ?
है । बुद्धि से यह कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है । सहजासहज प्राप्त हो जाए ऐसा यह संसार है । यह तो भोगना ही नहीं आता, वर्ना ऐसा है कि मनुष्य के जन्म में भोग सकते हैं, लेकिन यह मनुष्य भोग ही नहीं सकता और वापस इनके टच (संपर्क) में आए हुए सभी जानवर भी दुःखी हुए हैं। अन्य करोड़ों जीव हैं उसके बावजूद भी सिर्फ यह मनुष्य ही दुःखी है, क्योंकि सब का दुरुपयोग किया, बुद्धि का, मन का, सभी का ही। सिर्फ यह मनुष्य ही निराश्रित है । यदि चोर सामने आ जाए तो 'मेरा क्या होगा' ऐसा विचार इन मनुष्यों को ही आता है । 'मैं कैसे चलाऊँगा? मेरे बगैर चलाएगा ही कौन ?' इस प्रकार की जो चिंता करते हैं, वे सभी निराश्रित ही हैं, जबकि जानवर भगवान के आश्रित हैं। उन्हें तो आराम से खाना-पीना मिलता है । उनके लिए डॉक्टर, हॉस्पिटल जैसा कुछ भी नहीं है और उन लोगों के लिए अकाल जैसा भी कुछ नहीं है। हाँ! जो जानवर, मनुष्य के साथ में रहते हैं, जैसे गाय, बैल और घोड़ा वगैरह वापस दुःखी हुए हैं ।
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बुद्धि तीन प्रकार की हैं, एक, अव्यभिचारिणी बुद्धि, दूसरी, व्यभिचारिणी और तीसरी, सम्यक् बुद्धि । इन तीनों प्रकारों में, जिन्होंने किसी जन्म में 'जिन ( तीर्थंकर) ' के दर्शन किए हो, उन्हें सम्यक् बुद्धि प्राप्त होती है। यदि शुद्ध 'जिन' के दर्शन किए हो और वहाँ पर श्रद्धा बैठी हो तो वह बीज व्यर्थ नहीं जाता, इसीलिए अभी सम्यक् बुद्धि प्राप्त होती है और फिर सहज भाव से मोक्षमार्ग मिल जाता है।
बुद्धि के उपयोग से बनते हैं कॉज़ेज़
मनुष्य जो क्रिया करता है, उस क्रिया में कोई दिक्कत नहीं है । यदि उसमें बुद्धि का उपयोग हुआ तो तुरंत ही कॉज़ेज़ बंधते हैं। वर्ना, जो क्रिया बुद्धि बगैर की होती है, वह सहज कहलाती है। बुद्धि का उपयोग होने से कॉज़ बंधा । अर्थात् यहाँ पर राग-द्वेष करता है न, किसी के साथ क्रोध करता है, मान या लोभ करता है, उसमें बुद्धि का उपयोग किए बगैर नहीं रहता और उससे कॉज़ेज़ बंधते ही हैं । जब बुद्धि का उपयोग होता है तब क्रोध करता है न ? जब सामने वाला व्यक्ति गाली