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अंतःकरण में दखल किसकी ?
व्यवहार के रूप से चलता रहे। खुद की गैरहाज़िरी में व्यवहार चलता रहे। सचमुच व्यवहार ऐसा ही है, लेकिन भ्रांति से यह एकता लगती है। यह भ्रांति किस आधार पर होती है ? जागृति नहीं है, इसलिए। जागृति की कमी से भ्रांति हो जाती है। फिर चूक जाता है, वापस जागृति आती है लेकिन यह व्यवहार जागृति है, निश्चय जागृति नहीं है । व्यवहार जागृति में तो पूरा व्यवहार ही याद आता रहता है। बल्कि ज़्यादा याद आता है और व्यवहार में तो लोगों को जितनी जागृति रहती है उतनी ठोकर लगती है। व्यवहार में सहज भाव से रहना है, अजागृति किसी काम की नहीं है, जागृति भी काम की नहीं है । सहज भाव से रहने में ठोकर नहीं लगती । विकृति से असहजता
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इस गुलाब के पौधे का निकाल (निपटारा करना है, क्या ? नहीं, वह तो उसके सहज स्वभाव में ही है। इन मनुष्यों ने अपना सहज स्वभाव खो दिया है।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य जाति को इस में भेद है, यह अच्छा है, यह ऐसा है और नकल करता है। लेकिन इन्हें तो कोई भेद है ही नहीं ।
दादाश्री : अर्थात् क्या है कि सहज स्वभाव खो दिया है। सहज स्वभाव! सभी प्रकृतियों का सहज स्वभाव है। आत्मा तो सहज स्वभाव में ही है। हर एक जीवित वस्तु में आत्मा सहज स्वभाव में रहता है और प्रकृति भी सहज स्वभाव में रहती है । सिर्फ इन मनुष्यों की ही प्रकृति विकृत है। अर्थात् प्रकृति विकृत होने की वजह से आत्मा में विकृतता काही फोटो दिखाई देता है इसलिए व्यवहार आत्मा भी विकृत हो जाता है । मनुष्य को सहज होने की ज़रूरत है । खाओ - पीओ लेकिन सहज । जबकि यह असहज रहता है । जब नींद आती है तब जागता है और जब नींद नहीं आती तब सो जाता है ।
एकता मानी है अहंकार ने
वह
प्रश्नकर्ता : इसका मतलब ऐसा हुआ कि जो असहज है, सहज को बाँध लेता है ?