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सहजता
दादाश्री : हाँ, उनके लिए। औरों के लिए तो यह कोई काम का ही नहीं। यह बात सुनने से भी कोई फायदा नहीं। किस तरह से मेल होगा? टिकट किस गाँव की और ट्रेन कहाँ जाती होगी!
प्रश्नकर्ता : फिर अंत में तो सूक्ष्म अहंकार रहता होगा न, आखिर में, डिस्चार्ज हो जाने के बाद?
दादाश्री : अंतःकरण का सूक्ष्म अहंकार, वह कभी-कभी स्थूल में भी (देह में समाया) रहता है लेकिन वह अहंकार लटू (टॉप्स) के जैसा रहता है, इसलिए हमें परेशान नहीं करेगा।
प्रश्नकर्ता : तो उस डिस्चार्ज में अपना अहंकार कैसा रहता है ?
दादाश्री : वह सहज हो चुका होता है। इसलिए जहाँ सहज होता है वहाँ अहंकार नहीं रहता।
कर्ताभाव से भव बंध जाता है प्रश्नकर्ता : जहाँ उसे ऐसा लगता है कि मेरे बगैर नहीं चलेगा, उसे आप सजीव अहंकार कहते हो?
दादाश्री : जिसे हर एक क्रिया में, 'मैं करता हूँ' ऐसा भान है न, वही सजीव अहंकार है। नाई को भी तय करना पड़ता है कि मुझे इनकी हजामत करनी है तो वह हो ही जाती है और यदि कभी ऐसा कहे कि 'मैं करता हूँ, मेरे बगैर कोई नहीं कर सकता', तो बल्कि खून निकालेगा!
___ इसलिए सहज होने पर सौ प्रतिशत फल मिलेगा। फिर यदि कुछ और करने गया तो चालीस प्रतिशत फल मिलेगा। अतः सहज का बहुत ऊँचा फल मिलेगा। अहंकार अंधा है, वह काम को पूरी तरह से सफल नहीं होने देता और वापस अगला जन्म बांधता है, सो अलग!
जहाँ सहज भाव वहाँ व्यवहार आदर्श आदर्श व्यवहार हो और उस व्यवहार में खुद न हो। व्यवहार,