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अंत:करण में दखल किसकी?
दादाश्री : कुछ भी नहीं सुधार सकते। उल्टा बिगाड़ोगे। अगर अभी अस्सी प्रतिशत बिगड़ा है तो उसे नब्बे प्रतिशत करोगे।
प्रश्नकर्ता : चंदूभाई का सुपरविज़न करना है और उसे गाइडेन्स वगैरह कुछ नहीं देना है?
दादाश्री : सुपरविज़न का मतलब सिर्फ देखना और जानना है, गाइडेन्स वगैरह कुछ नहीं देना है।
प्रश्नकर्ता : सुधारना या कोई कर्तापद में नहीं रहना है, सुधारने की ज़रूरत ही नहीं है?
दादाश्री : सुधरता ही नहीं। बल्कि सुधारने जाता है तो खुद बिगड़ जाता है। अगर इन पुरुषों को एक दिन के लिए रसोई सौंप दें न, तो सब बिगाड़ देंगे। कढ़ी-सब्जी बिगाड़ देंगे, फिर दाल बिगाड़ देंगे, नमक, मिर्च, सब्जी भी बिगाड़ देंगे, सबकुछ बिगाड़कर रख देंगे। क्योंकि बुद्धि वाला ऐसा सोचेगा कि यह ज़्यादा हो जाएगा, ऐसा होगा, वैसा होगा। इमोशनल हो गया इसीलिए बिगड़ा।
साहजिक का काम होता है सरल प्रश्नकर्ता : स्त्रियाँ तो पचास लोगों का खाना बना सकती है, यदि सौ लोगों के लिए खाना बनाना हो तो पुरुष बनाते हैं।
दादाश्री : वे सब साहजिक हो गए हैं। जो साहजिक हो गया है, वह एक्सपर्ट बन जाता है।
प्रश्नकर्ता : वह तो हमारा काम नहीं है, इसलिए बिगड़ता है न, दादा। हम अपने व्यापार-धंधे के फील्ड में एक्सपर्ट है। चंदूभाई को किसी फील्ड में एक्सपर्ट तो बनाना पड़ेगा न?
दादाश्री : हमें क्या बनाना है? वह बनकर ही आया है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर, वह किस फील्ड में एक्सपर्ट है उसे जानना तो पड़ेगा न? वह जिस फील्ड में एक्सपर्ट है, उसे उस काम में तो लगाना पड़ेगा न?