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अंत:करण में दखल किसकी?
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दादाश्री : वह जो क्लेश का अभाव था न, वह आप बुद्धि पूर्वक करते थे। और यह जो क्लेश का अभाव है, वह सहज भाव से रहता है। इसमें कर्तापन छूट जाता है।
समझ समाती है बुद्धि की दखल प्रश्नकर्ता : तो बुद्धि को खत्म कर दीजिए। आप्तवाणी समझने के लिए तो बुद्धि का पना (सामर्थ्य) भी कम पड़ जाता है।
दादाश्री : इसलिए बुद्धि के साथ थोड़ी समझ भी बढ़ानी है। जो ज्ञान नहीं कहलाता और बुद्धि नहीं कहलाती, ऐसी समझ ले आओ। समझ, जो बुद्धि भी नहीं कहलाती है और ज्ञान भी नहीं। जब वह समझ पूर्ण हो जाती है तब उसे ज्ञान कहते हैं।
बुद्धि की दखल से रुका है आनंद बुद्धि के चले जाने के बाद आनंद बहुत बढ़ता जाता है। यह आनंद का धाम ही है लेकिन बीच में बुद्धि दखल करती है।
प्रश्नकर्ता : यह जो आनंद का धाम है, वह क्या है?
दादाश्री : मैंने आपको जो दिया है, वह आनंद का धाम ही दिया है, मोक्ष ही दिया है। बुद्धि बीच में आती है इसलिए दखल करती है। जो बुद्धि संसार में हेल्प करती थी...
प्रश्नकर्ता : अर्थात् जो रिएक्शनरी आनंद है, ऐसा आनंद नहीं होता लेकिन क्या इससे भी ऊँचा आनंद रहता है?
दादाश्री : नहीं! ऊँचे का मतलब मूल आनंद स्वरूप ही है। आपको आनंद ही दिया है लेकिन इसमें यह बुद्धि जो संसार में बड़ा बनाती थी। जो बुद्धि हमें मज़बूत करके बड़ा व्यापार करवाती थी, वही बुद्धि अभी बीच में आ रही है। यहाँ हिन्दुस्तान में, जितने बुद्धिशाली, बुद्धि के धर्म हैं, उनमें से किसी में भी मोक्ष का मार्ग नहीं है। बुद्धि का मतलब मोक्ष से दूर और जो कभी भी मोक्ष में नहीं जाने दे, उसे बुद्धि कहते हैं।