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सहजता
दादाश्री : वह तो, उसकी प्रेक्टिस है । अब, प्रेक्टिस बंद करनी पड़ेगी कि इस तरह से दखलंदाज़ी कभी भी नहीं हो । जब इस चाबी का उपयोग बार-बार करेंगे तब फिर जो दूसरा थोड़ा-बहुत माल बचा है उसके निकल जाने के बाद बंद हो जाएगा ।
प्रश्नकर्ता : क्योंकि अगर हमें सहज होना है और देखते रहना है तो दखलंदाज़ी बिल्कुल भी किसी काम की नहीं ।
दादाश्री : वह तो, पहले का जो माल भरा हुआ है, वह निकले बगैर नहीं रहेगा। भरा हुआ माल तो निकले बगैर रहेगा ही नहीं न ! भरा हुआ माल अच्छा न लगे तो भी निकलता ही रहता है । उसे हम देखें तो सहज ही है। जब (प्रकृति) सहज होगी, दोनों सहज होंगे तब हल आ जाएगा लेकिन अगर अभी एक सहज हो गया तो भी बहुत हो गया।