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सहजता
दादाश्री : जितना उदय में आया हो उतना ही करे। पोतापणुं नहीं
रखें।
अभी तो लोगों का पोतापणुं कैसा है? प्रकृति का रक्षण करने की बात तो है ही, बल्कि उल्टा 'अटैक' भी करते हैं, सामने वाले पर प्रहार भी करते हैं'। इसलिए यह पोतापणुं निकालना है न! प्रकृति का रक्षण करना, वह पोतापणुं है। अपने महात्मा करते होंगे क्या? इसीलिए सहज नहीं हो पाते, भाई। यह तो, ज़रा सा अपमान करे उससे पहले ही रक्षण कर लेते हैं, ज़रा सा कुछ और करे वहाँ रक्षण कर लेते हैं। वह सब सहजपना होने ही नहीं देता न!
अपमान करने वाला उपकारी __ मूल वस्तु प्राप्त करने के बाद अब अहंकार का रस खींच लेना है। यदि रास्ते में कोई कहे, 'अरे, आप बेअक्ल हो, सीधे चलो' तो उस समय अहंकार खड़ा होता है, चिढ़ होती है। उसमें रूठने का रहा ही कहाँ? अब हमें चिढ़ जैसा कुछ रहता ही नहीं। अहंकार का जो रस है उसे खींच लेना है।
अपमान किसी को भी अच्छा नहीं लगता, लेकिन हम कहते हैं कि वह तो बहत हेल्पिंग है। मान-अपमान, वह तो अहंकार का कड़वामीठा रस है। अपमान करने वाला तो आपका कड़वा रस खींचने के लिए आया कहलाएगा। 'आप बेअक्ल हो' ऐसा कहा अर्थात् वह रस सामने वाले ने खींच लिया। जितना रस खींच गया उतना अहंकार चला गया
और वह भी बगैर मेहनत के दूसरे ने खींच लिया। अहंकार तो रसवाला है। जब कोई अनजाने में निकालता है तब जलन होती है। इसलिए जान-बूझकर, सहज ही अहंकार को खत्म हो जाने देना है। यदि सामने वाला सहज ही रस खींच लेता हो तो उससे अच्छा और क्या है? सामने वाले ने कितनी ज्यादा हेल्प की कहलाएगी!
मान में नुकसान-अपमान में फायदा प्रश्नकर्ता : दादा, यह जो पूजे जाने की भीख है वह कैसे जाएगी?