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त्रिकरण ऐसे होता है सहज
प्रश्नकर्ता : मन वश होने के बाद फिर ज्ञाता-दृष्टा पद स्वाभाविक चीज़ हो जाती है क्या ?
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दादाश्री : आपको मन वश हो ही गया है, अब प्रेक्टिस करने की ज़रूरत है । जैसे-जैसे मेरी बात सुनते जाओगे वैसे-वैसे मज़बूत बनते जाओगे, हमारे वचनबल से । हमारा वचनबल ही काम करता रहता है। प्रश्नकर्ता : अभी तो हमारा मन वश नहीं रहता, तो मन वश करने के लिए क्या पुरुषार्थ करना है ?
दादाश्री : वह ज्ञान से वश में रहेगा। हमने जो ज्ञान दिया है, वह मन को वश करने वाला ही है। उससे फिर आपको लोगों का मन वश में रहेगा।
प्रश्नकर्ता : नहीं दादा, पहले हमें अपने मन को वश में करने
दो।
दादाश्री : पहले आपका मन, आपके वश में हो जाएगा और अगर आपका मन आपके वश में हो गया तो अन्य लोगों का मन भी आपके वश में हो जाएगा । जितना दूसरों का मन आपके वश हो गया, उतना आपका मन आपके वश हो गया । बाहर वालों के ऊपर से फिर आप अपना नाप लेना ।
प्रश्नकर्ता : क्या उसका टेस्ट यह है कि अगर हमारा मन, हमारे वश में रहेगा तो दूसरे का मन भी हमारे वश में रहेगा ?
दादाश्री : हाँ! अन्य कितनों का मन आपके वश रहता है, कितने अंश वश में रहता है, वह सब आपको देख लेना है ।
मन वश रहने की निशानी
प्रश्नकर्ता : सामने वाले का मन वश में रहे, उस बारे में थोड़ा विस्तार पूर्वक उदाहरण देकर समझाइए न, तो सभी एक्ज़ेक्टली (जैसा है वैसा) समझ सकेंगे ।
दादाश्री : आप ऐसी जगह पर गए हो कि वहाँ दस व्यक्ति