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आज्ञा का पुरुषार्थ बनाता है सहज
मेरी परीक्षा चल रही है। अरे, 'तू है' तो कर न, पढ़ न? तब कहे, 'नहीं, नींद आ जाती है।' तब तो वह तू नहीं है? तब उसे भेद समझ में नहीं
आता।
यदि नाटक देखने जाना हो और फाइल नं-1 को सोना हो तो सोने नहीं देता और नाटक देखने जाता है। तीन बजे तक नाटक देखता है और नाटक में ऐसे एकाध झपकी भी आ जाती है। उतने में कोई कहेगा, 'भाई, नाटक देखो न, ऐसा क्यों कर रहे हो?' वापस जागता है। फिर भी नहीं हो तो आखों में कुछ लगाकर बैठता है। लेकिन इससे किसी भी तरह से, मार-पीटकर काम ले लिया। इस फाइल की नींद में भी अब्स्ट्रक्शन (रुकावट) डाला। किसलिए? नाटक देखने के लिए, वह नींद में अब्स्ट्रक्शन करता है।
जहाँ समभाव से निकाल, वहाँ सहज यह अनियमित हो गया है। अनियमित है इसलिए असहज होता है। असहज रहता है इसलिए आत्मा को असहज करता है। जिसकी देह सहज, उसका आत्मा सहज। इसलिए पहले फाइल नंबर वन को ही सहज करनी है। जागरण करता है या नहीं? पुण्यशाली हो, आपके हिसाब में नाटक वगैरह नहीं है। हमारे हिसाब में तो बहुत नाटक थे। पहले नंबर की फाइल की है कोई गलती? पहले नंबर की फाइल को देखने जैसा है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : पहले नंबर की फाइल को ही देखने जैसा है, दादा।
दादाश्री : लोग यहाँ से गाड़ी में मुंबई जाते हैं, तो नींद में अब्स्ट्रक्शन करते हैं या नहीं? नींद में भी, जब वह गाड़ी में बैठता है मुंबई जाने के लिए, तब सारी रात जागता है। शरीर तो ऐसे-ऐसे हिलता रहता है। कोई साथ में हो न, उसके ऊपर गिर जाता है! तब अपने को ऐसा लगता है कि 'ये इतने बड़े आदमी होकर, कॉन्ट्रैक्टर होकर, मेरे ऊपर गिरते हैं!' ऊपर से अपने कोट को भी तेल वाला करता है। अब उनसे क्या कहें? हम कह भी क्या सकते हैं? क्योंकि उनका कोई गुनाह नहीं है। हम बैठे इसलिए हमारा गुनाह है, उनका क्या गुनाह ? वे तो