________________
सहजता
सहज रूप से सोते हैं बेचारे! लेकिन देह को सहज नहीं रहने दिया और असहज हो गया, उसका यह सब हिसाब है। भगवान क्या कहते हैं, 'देह को सहज करो।' जबकि इन्होंने असहज किया।
यदि गाड़ी में थक गए हो तो भी नीचे नहीं बैठते। पहले नंबर की फाइल क्या कहती है, 'बहुत थक गया हूँ' फिर भी ये इज़्ज़तदार लोग नीचे नहीं बैठते। ऐसा होता है या नहीं? मैं कहता हूँ कि 'अब बैठो न, बैठो।' 'ये लोग देखेंगे न!' लेकिन इनमें से आपको कौन पहचानता है और यदि पहचानते भी हो तो भी क्या? क्या इनमें से कोई इज़्ज़तदार है? गाड़ी में तुझे कोई इज़्ज़तदार दिखाई दिया? अगर कोई इज़्ज़तदार होगा तो अपनी इज़्ज़त जाएगी। मैंने तो बहुत इज़्ज़तदार लोग देखें हैं। इसलिए मुझे तो समझ में आ गया न, जब मैं थर्ड क्लास के डिब्बे में सफर करता था, तब बैग को नीचे रखकर उस पर बैठ जाता था, यदि बैग खराब होगा तो हर्ज नहीं।
___ अर्थात् मेरा कहना है कि इस देह को असहज करते हैं और फिर कहते हैं कि मुझे भूख नहीं लगती। जब भूख लगी हो उस समय ‘होता है कि जल्दी क्या है? अभी बातचीत चलने दो।' इस तरह से डेढ घंटा निकल जाता है हर रोज़ ऐसा ही करता है न। फिर कहता है, 'अब मेरी भूख बिल्कुल मर गई है।' अरे भाई, वह किस तरह से जीवित रहेगी? तूने प्रयोग ही ऐसे किए हैं न! अरे, भूख लगने के दो घंटे बाद खाता है, उस समय वह ताश खेलने बैठा होता है, कितने लोग तो मौज-शौक में रह जाते हैं न, 'होगा, होगा'। फिर दो घंटे के बाद भूख मर जाने बाद खाते हैं। इस तरह से सब असहज हो गया है।
अरे, मैंने तो एक आदमी को देखा था, आज से तीस साल पहले। उसने स्टेशन पर चाय मँगवाई और चाय वाले ने कप उसके हाथ में दिया। तब गाड़ी चलने लगी, अब उसके मन में ऐसा आया कि चाय के पैसे बेकार चले जाएंगे, उसने चाय मुँह में डाल दी और जल गया, यह तो मैंने खुद देखा था। हाँ, चाय का पूरा कप ही अंदर डाल दिया। पहले रकाबी की पी ली और उसके बाद पौना कप चाय बची थी, इतने में गाड़ी चलने लगी तो वह दुकान वाला कहने लगा, 'अरे, पी लो, पी