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असहज का मुख्य गुनहगार कौन?
जो उदय स्वरूप है, उसमें दखल मत करना। अपना ज्ञान ऐसा कहता है कि उस उदय को जानो, यानी कि जो उदय है चंदभाई उसी में तन्मयाकार रहेंगे, 'आपको' जानना है। उसका जो भी उदय हो, उसे आगे-पीछे करने की ज़रूरत नहीं है। उदय किसका आएगा? जिसका पूरण (चार्ज होना) किया है, उसका गलन ((डिस्चार्ज होना)) होता रहेगा। नया पूरण नहीं होगा। इसलिए पुराना, जिसका पूरण किया हुआ है, उसका गलन होता रहेगा। जो भी उसके उदय में आए, उस उदय में रहो। चंदूभाई उदय में रहेंगे और आपको' उन्हें देखते रहना है बस इतना ही काम है। अगर 'आप' उसे देखते रहोगे तो आत्मा सहज हो जाएगा। अगर चंदूभाई उदय में रहेंगे तो देह सहज हो जाएगा, पुद्गल सहज हो गया कहलाएगा।
अब जब तक प्रकृति है तब तक उसके पूरे नुकसान की भरपाई हो ही जाएगी यदि दखल नहीं करो तो। यदि दखल नहीं करेंगे तो प्रकृति नुकसान की भरपाई कर देगी। प्रकृति खुद के नुकसान की भरपाई खुद ही करती है। अब इसमें 'मैं कर रहा हूँ' कहने से बखेड़ा हो जाता है।
पुरुषार्थ, तप सहित प्रश्नकर्ता : आपने 'वह' पुरुषार्थ की बहुत सुंदर बात बताई कि व्यवस्थित के उदय के हिसाब से भीतर तन्मयाकार हो जाए लेकिन उस समय खुद उसमें एकाकार न हो और उस समय वह पुरुषार्थ में रहे, उसे एकाकार नहीं होने दे।
___ दादाश्री : जो पुरुषार्थ में रहेगा, उसे कोई परेशानी नहीं होगी। वही पुरुषार्थ कहलाता है न! प्रकृति तो हमेशा उदय में तन्मयाकार हो ही जाएगी उसी से उसे शांति मिलेगी और पुरुषार्थ एकाकार नहीं होने देता, जिससे 'उस' प्रकृति को अकुलाहट होती है, इसलिए जलन होती है।
__ प्रश्नकर्ता : क्या ज्ञान से ऐसा हो सकता है, कि जब 'वह' संपूर्ण रूप से अलग हो जाए, बिल्कुल भी एकाकार नहीं होता हो, तो फिर 'वे' दुःख (और) जलन बंद हो जाएँगे?