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असहज का मुख्य गुनहगार कौन?
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जहाँ संपूर्ण सहज, वहाँ बने भगवान प्रश्नकर्ता : यदि प्रकृति संपूर्ण रूप से सहज हो जाए, तो क्या बाहर का भाग भी भगवान जैसा दिखाई देता है ?
दादाश्री : हाँ, वैसी क्षमा ही दिखाई देती है, वैसी नम्रता दिखाई देती है, वैसी सरलता दिखाई देती है, और वैसा संतोष दिखाई देता है। किसी भी चीज़ का इफेक्ट ही नहीं। पोतापणुं नहीं रहता। वह सबकुछ लोगों को दिखाई देता है। बहुत सारे गुण उत्पन्न हो जाते हैं। वे न तो आत्मा के गुण हैं और न ही इस पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) के, ऐसे गुण उत्पन्न हो जाते हैं।
क्षमा तो आत्मा का भी गुण नहीं है और पुद्गल का भी गुण नहीं है। 'वह' गुस्सा करता है, उसे हम क्षमा नहीं करते लेकिन यों सहज क्षमा ही रहती है। लेकिन सामने वाले को ऐसा लगता है कि 'इन्होंने क्षमा कर दिया।' अर्थात् यहाँ पर पृथक्करण हो जाने से हमें समझ में आता है कि मुझे इसमें लेना-देना नहीं है।
प्रश्नकर्ता : यह क्षमा के लिए हुआ, इसी प्रकार सरलता के लिए कैसा होता है?
दादाश्री : हाँ, सरलता तो होती ही है न! सामने वाले की दशा उल्टी (विपरीत) हो, तब भी सरल को वह सीधा ही दिखाई देता है। कैसी सरलता है ! नम्रता! इसमें आत्मा का कुछ नहीं है।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् खुद के क्रोध-मान-माया-लोभ चले गए हैं, इसलिए ऐसे गुण प्रकट होते हैं ?
दादाश्री : लोभ के बजाय संतोष होता है, इसलिए लोग कहते हैं, 'देखो न, इन्हें कुछ चाहिए ही नहीं। जो भी हो, वह चलेगा।' जब ऐसे गुण उत्पन्न होते हैं, तब भगवान कहलाते हैं।
प्रश्नकर्ता : जब लोगों को सरलता, क्षमा दिखाई देती है तब वे खुद किसमें रहते हैं?