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सहजता
दादाश्री : खुद मूल स्वरूप में रहते हैं, लोग ऐसा कहते हैं, पुद्गल ऐसा दिखाई देता है इसलिए। पुद्गल का वर्तन ऐसा दिखाई देता है इसलिए लोग कहते हैं, ओहोहो! कितनी क्षमा रखते हैं ! इन्हें देखो न, हमने इन्हें गाली दी लेकिन इनके चेहरे पर कुछ भी असर नहीं हुआ। कितनी क्षमा रखते हैं ! फिर वापस यह कथन भी कहते हैं, 'क्षमा वीरस्य भूषणम्।' अरे नहीं है, वीर भी नहीं है, क्षमा भी नहीं है, ये तो 'भगवान हैं'। वापस कहते हैं, क्षमा, वह मोक्ष का दरवाज़ा है। अरे भाई, यह क्षमा नहीं है, यह तो सहज क्षमा है। जिस तरह से क्षमा सुधारती है वैसा कोई नहीं सुधार सकता। लोग जिस प्रकार क्षमा से सुधरतें हैं, वैसे किसी अन्य चीज़ से नहीं सुधर सकते। मारने से भी नहीं सुधर सकते इसलिए क्षमा वीरस्य भूषणम्' कहलाती है।