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सहजता
होती। उसके लिए हमें उपाय करना पड़ता है। कुछ घंटे बैठकर ज्ञाताज्ञेय के संबंध से वह विलय हो जाएगी । जिस प्रकृति को विलय करना हो वह इस तरह से विलय होगी इसलिए एक घंटा बैठकर खुद ज्ञाता बनकर उन चीज़ों को ज्ञेय रूप से देखो तो वह प्रकृति धीरे-धीरे विलय होती जाएगी। अर्थात् यह सारी प्रकृति यहाँ पर खत्म हो सके ऐसी है।
बिफरी हुई प्रकृति सहज होने से....
प्रश्नकर्ता : दादा आपने ऐसा कहा कि जब बिफरी हुई प्रकृति सहज हो जाए तब शक्ति बढ़ने लगती है ?
दादाश्री : हाँ, शक्ति बहुत बढ़ती है ।
प्रश्नकर्ता : ऐसा किस तरह से होता है ?
दादाश्री : अगर बिफरी हुई प्रकृति सहज हो जाए न, तो एकदम से शक्ति उत्पन्न होती है, सभी शक्तियों को बाहर से खूब खींचती है। जैसे कि हॉट (गर्म) लोहा होता है न, उस हॉट लोहे के गोले पर यदि पानी डाले तो क्या होता है ? पूरा पी जाता है, एक बूंद भी नीचे नहीं गिरने देता। उसी तरह से जो प्रकृति ऐसी बिफरी हुई रहती है न, वह हॉट गोले जैसी हो जाती है । फिर जैसे-जैसे वह ठंडी होती जाती है, वैसे-वैसे उसमें शक्ति बढ़ती जाती है।
सहज जीवन कैसा होता है ?
अब सहज रूप से जीवन जी पाते हो क्या ? कोई गाली दे, उस समय सहज रह पाते हैं ?
प्रश्नकर्ता : मानसिक गुस्सा रहता है, बाहर नहीं आता ।
दादाश्री : वह सहज जीवन ही नहीं कहलाता । सहज जीवन में
तो यदि गाली दे तब भी सहज रहता है । यदि कोई जेब काट ले तो भी सहज रहता है। सहज जीवन अर्थात् भगवान बनना हो तब सहज जीवन होता है।