________________
३२
सहजता
'देखने वाले' को नहीं है, खराब या अच्छा
यदि देह दातुन कर रहा हो और उसे वह देखे, आत्मा जाने, तो दोनों सहज कहलाएँगे । दातुन करना, वह गैरकानूनी नहीं है। अगर गैरकानूनी होता तो लोग आपत्ति उठाते न ? लेकिन उससे अलग रहता है। उसे ऐसा नहीं लगता कि यह मैं कर रहा हूँ ।
प्रश्नकर्ता : देह कर रहा है, मैं नहीं कर रहा ।
दादाश्री : देह कर रहा है । खराब या गलत नहीं है वहाँ पर सहज है। देखने वाले के लिए खराब या गलत नहीं होता, करने वाले के लिए होता है। जब तक बुद्धि है तब तक खराब है। यदि देखने वाला बना तो ज्ञानी बन गया, उसे खराब - गलत होता ही नहीं इसलिए ये कषाय चले जाते हैं।
'चंदू' उदय में, 'खुद' जानपने में
प्रश्नकर्ता : बाहर के उदय हो उसमें खुद का अहंकार एकाकार हो जाता है इसलिए उसे एक्सेप्ट कर लेता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए न? उसे अलग ही रहना चाहिए न ? जब बाहर के उदय में वह एकाकार हो जाए तब ?
दादाश्री : एकाकार हो जाए उसमें हमें क्या ? एकाकार होना तो उसका स्वभाव है।
प्रश्नकर्ता : यदि अहम् है तो संयोगो में एकाकार होगा ही ।
अगर
दादाश्री : हाँ, बस। वह तो होगा लेकिन तब उसे देखना है, उसे नहीं देखेंगे तो मार पड़ेगी। ऐसा करते-करते-करते फिर उसके बाद अलग हो जाएगा। उसके बाद आपका जैसा यह ज्ञान है, वैसा ही, उस तरफ का रहेगा, यदि देखने का अभ्यास होगा तो । वर्ना, समय लगेगा।
प्रश्नकर्ता: दादा, अब देर नहीं करनी है ।
दादाश्री : ऐसा नहीं है, वह तो, नियम तो है ही न। अगर देखने का अभ्यास रहेगा तो 'वह' (पहले का अभ्यास) नरम होता जाएगा ।