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सहजता
खराब दिखे, पूरी दुनिया में खराब व्यवहार दिखे लेकिन वही फुल्ली डेवेलप हैं । वे फॉरेन वाले जैसे - जैसे डेवेलप होंगे वैसे-वैसे वे भी विकल्पी हो जाएँगे।
ये फॉरेन के लोग अगर बगीचे में बैठे हो तो, आधे-आधे घंटे तक हलचल किए बगैर बैठे रहते हैं ! जबकि अपने लोग तो धर्म स्थलों में भी हलचल मचा देते हैं ! क्योंकि आंतरिक चंचलता है ।
फॉरेन के लोगों की चंचलता पाव और मक्खन में रहती है । और यहाँ के लोगों की चंचलता सात पीढ़ियों की चिंता में रहती है !
प्रश्नकर्ता : उन लोगों में भी लोभ रहता है न ?
दादाश्री : वह लोभ नहीं कहा जाता । वहाँ के तो गिने-चुने लोग ही लोभी हैं। लॉर्ड या ऐसा कोई हो, वह ! यहाँ के तो मज़दूर भी लोभी होते हैं और यदि वहाँ के लोगों से कहे कि, 'प्लीज़, हेल्प मी ! मेरे पास तो इतने दूर जाने के लिए पैसे भी नहीं हैं ! ' वे साहजिक लोग तुरंत ही खुद ड्राइविंग करके, खुद के पैसे से उसे छोड़ आएँगे ।
तब अपने यहाँ लोग कहते हैं, फॉरेन वाले तो बहुत अच्छे, बहुत अच्छे ! अरे, साहजिक का क्या बखान करना ? जो नालायक होगा वह तो मारकर ले लेगा और अगर अच्छा होगा तो दे देगा। उसे लेने का विचार ही नहीं आएगा, क्योंकि वह साहजिक है जबकि यहाँ के लोगों का तो तुरंत ही चक्कर चलेगा । वह कुछ अलग करेगा। यह तो इन्डियन है, इसका लोभ तो सात पीढ़ियों तक रहता है लेकिन अभी की जनरेशन में लोभ कम हो गया है। उन फॉरेन वालों में, अगर विलियम और मेरी कमाते हो तो वे माँ- - बाप से अलग रहते हैं । जबकि अपने यहाँ तो बेटा कमाए और मैं खाऊँ, बेटा मेरा नाम करेगा। क्योंकि आध्यात्मिक में फुल्ली डेवेलप हैं, भले ही भौतिक में अन्डरडेवेलप हैं। वे फॉरेन वाले भौतिक में फुल्ली डेवेलप्ड हैं।
प्रश्नकर्ता : और हिन्दुस्तान के लोग ?
दादाश्री : हिन्दुस्तान के लोग असहज हैं, इसलिए ज़्यादा चिंता