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सहजता
अज्ञ सहज - असहज - प्रज्ञ सहज प्रश्नकर्ता : पहले किसका मोक्ष होता है ? सहज का होता है या असहज का?
दादाश्री : फॉरेन वाले, सहज (लोगों) को तो यहाँ आना पड़ेगा। इस गर्मी में आना पड़ेगा। यह, सौ टच के सोने का शुद्धिकरण (करने) का कारखाना है। हिन्दुस्तान अर्थात् दिन-रात भट्ठी में!
प्रश्नकर्ता : अर्थात् ऐसा हुआ न, कि सहजता में से असहजता में जाता है फिर जब असहजता 'टॉप' पर जाती है, उसके बाद मोक्ष की तरफ जाता है?
दादाश्री : असहजता में 'टॉप' पर जाने के बाद जलन को पूरी तरह से देखें, अनुभव करें, तब मोक्ष में जाने का निश्चय करता है। बुद्धि,
आंतरिक बुद्धि बहुत बढ़नी चाहिए। फॉरेन के लोगों में बाह्य बुद्धि रहती है, वह सिर्फ भौतिक का ही दिखाती है। नियम कैसा है, कि जैसे-जैसे
आंतरिक बुद्धि बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे दूसरे पलड़े में जलन बढ़ती जाती है!
प्रश्नकर्ता : असहजता में 'टॉप' पर जाने के बाद, सहजता में आने के लिए क्या करता है? ।
दादाश्री : फिर रास्ता ढूँढ निकालता है, कि इसमें सुख नहीं है। इन स्त्रियों में सुख नहीं है, बच्चे में सुख नहीं है। पैसे में भी सुख नहीं है, इस तरह से उनकी भावना बदलती है ! ये फॉरेन के लोग तो, स्त्री में सुख नहीं है, बच्चे में सुख नहीं है ऐसा तो कोई बोलता ही नहीं है न। यह तो (अपने लोगों में) जब जलन पैदा होती है, तब कहते हैं कि अब यहाँ से भागो, जहाँ कुछ मुक्त होने की जगह है। जहाँ अपने तीर्थंकर मुक्त हुए हैं, वहाँ चलो। हमें यह नहीं पुसाता।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् उस समय उनका भाव बदलना चाहिए, ऐसा? दादाश्री : अगर भाव नहीं बदलेगा, तो हल ही नहीं आएगा! ये