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सहजता
डिस्चार्ज अहंकार है, वह प्रतिष्ठित आत्मा है, पूर्वजन्म का। अज्ञानता में जो जीवित अहंकार है वह प्रतिष्ठा करता है। 'मैं कर रहा हूँ और मेरा है।' उस तरह नई प्रतिष्ठा करने से वह चक्र चलता ही रहता है। हम वह प्रतिष्ठा बंद करवा देते हैं। उससे अपना चार्ज होना बंद हो जाता है। यदि प्रतिष्ठा बंद हो जाए तो समझो सब बंद हो गया! नया संसार खड़ा होना बंद हो गया।
प्रश्नकर्ता : नया संसार खड़ा होना बंद हो गया फिर वह जो विभाग बाकी बचा, उसी को हम प्रतिष्ठित आत्मा मानते हैं न?
दादाश्री : हाँ! और अब जो है, उसका निकाल (निपटारा) कर देंगे। 'वह' निकाल होने के लिए ही आया है, उसका निकाल करना है।
दखल होने की वजह से असहज प्रश्नकर्ता : निकाल होने में जो दखल करता है, क्या वही निश्चेतन चेतन है?
दादाश्री : उसमें जो दखल करता है न, वह निश्चेतन चेतन नहीं है, वह मृत अहंकार (व्यवहार आत्मा) है। हाँ, लेकिन उसमें दखल करके वह बिगाड़ता है। बाकी, वह तो अपने आप निकाल होने के लिए ही आया है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर प्रतिष्ठित आत्मा के रूप में जो अलग हुआ है, यदि उसमें किसी भी प्रकार की दखल नहीं करेंगे तो अपने आप ही गलन हो जाएगा?
दादाश्री : हाँ, अपने आप ही सहज रूप से छूट जाएगा। प्रश्नकर्ता : यदि दखल करेगा, तो क्या उसमें बखेड़ा होता रहेगा?
दादाश्री : बस, वह पिछला अहंकार दखल करता है। मृत अहंकार दखल करता है और उस मृत अहंकार को बुद्धि प्रोत्साहन देती है, बस बुद्धि परेशान करती है। वर्ना, सहज भाव से (कर्म बंधन) खुलते ही जाते हैं।