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अज्ञ सहज - प्रज्ञ सहज
देरासर में जाते हैं, महाराज के पास जाते हैं, वह तो भाव बदले बगैर तो कोई जाएगा ही नहीं न!
उदयाकार, वह उल्टी साहजिकता प्रश्नकर्ता : ज्ञान के बाद की साहजिकता कैसी होती है, वह समझाइए न!
दादाश्री : जितना उदय में आए, उतना ही करता है। पोतापणुं नहीं रखता। जबकि अज्ञान साहजिक, वह पोतापणुं सहित होता है। पतंग उड़ाने गया, वह साहजिक। दादा ने मना किया, उसे नहीं जाना था, फिर भी गया...
प्रश्नकर्ता : तो वह दादा की आज्ञा के विरुद्ध गया, ऐसा कहा जाएगा न?
दादाश्री : क्या विरुद्ध भी साहजिक कहलाएगा? भैंस बना देती है, ऐसी साहजिकता।
प्रश्नकर्ता : भैंस बनाती है? दादाश्री : फिर क्या होगा? शरीर तो मोटा मिलेगा!