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सहजता
प्रश्नकर्ता : लेकिन दोनों में अंतर क्या है, ज्ञानी में और बच्चों
में?
दादाश्री : बच्चों में अज्ञानता से और ज्ञानी में सज्ञानता से हैं। बच्चों में अंधेरे में और इनमें प्रकाश में। प्रकाश के बगैर तो इंसान सहज नहीं रह सकता न! अर्थात् जब बुद्धि जाएँ तब सहज रह सकता है वर्ना, इमोशनल हुए बगैर नहीं रहता। बुद्धि इमोशनल ही करवाती है। जब तक जड़ता रहती है तब तक इमोशनल नहीं होता। कितने लोगों को तो हम डाँटते रहते हैं फिर भी वह विचलित नहीं होता। लेकिन कैसे विचलित होगा? अभी तक बात उन तक पहुँची ही नहीं है ! जबकि बुद्धिशालियों को तो बोलने से पहले ही बात समझ में आ जाती है। सोचते ही बात उन तक पहुँच जाती है।
ज्ञानी पुरुष और बालक दोनों एक समान कहलाते हैं। सिर्फ अंतर क्या है, बालक का उगता हुआ सूर्य है और ज्ञानी पुरुष का डूबता हुआ सूर्य है। बालक में अहंकार है लेकिन अभी उसका अहंकार जागृत होना बाकी है जबकि इनका अहंकार शून्य हो चुका है।
जागृति के स्टेपिंग पहले पुद्गल में जागृति आनी चाहिए। आत्मा का भान होने के बाद पुद्गल में सोता है, फिर आत्म जागृति उत्पन्न होती है। क्या दूध गिरने पर छोटे बच्चे किच-किच करते हैं? नहीं! किसलिए? तब कहें, 'अज्ञान के कारण ही'। फिर जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं वैसे-वैसे पुद्गल की जागृति आती जाती है और तब वे किच-किच करना शुरू करते हैं। उसके बाद आत्म जागृति की बात आती है।
जागृति किसे कहेंगे? खुद अपने आप से कभी भी, किसी भी संयोग में क्लेशित नहीं हो तभी से जागृति की शुरुआत होती है फिर दूसरे 'स्टेपिंग' में, दूसरों से भी खुद क्लेशित नहीं हो, वहाँ से लेकर ठेठ सहज समाधि तक की जागृति रहती है। अगर जाग चुके हैं तो जागने का फल मिलना चाहिए। यदि क्लेश हो, तो कैसे कह सकते हैं कि जाग