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सहजता
की तरह घूमती रहती है। खुद के भले-बुरे का कुछ भी भान नहीं होता। मशीन भीतर हित दिखाए तो हित करती है, अहित दिखाए तो अहित करती है। यदि किसी का खेत देखा तो उस खेत में घुस जाती है।
प्रश्नकर्ता : उसमें वे कुछ भाव नहीं करते न?
दादाश्री : उन्हें तो 'निकाल' करने का कुछ रहता ही नहीं न! वह तो उनका स्वभाव ही वैसा है, सहज स्वभाव! उनका बछड़ा चारछ: महीने का होने के बाद अगर बिछड़ जाए तो उन्हें कुछ असर नहीं होता। वे सिर्फ चार-छः महीने तक ही उनकी देख-भाल करती है। और अपने लोग तो...
प्रश्नकर्ता : मरते दम तक करते हैं ?
दादाश्री : नहीं! सात पीढ़ियों तक करते हैं ! गाय तो अपने बछड़े की देख-भाल छः महीने तक ही करती है जबकि फॉरेन के लोग (बच्चे) अठारह साल के हो जाए तब तक करते हैं और अपने हिन्दुस्तान के लोग तो सात पीढ़ियों तक करते हैं।
____ अर्थात् यह प्राकृत सहज चीज़ ऐसी है कि इसमें बिल्कुल भी जागृति नहीं रहती। भीतर से जो उदय आया, उस उदय के अनुसार भटकना, उसे सहज कहते हैं। जैसे कि यह लटू (टॉप्स) घूमता है, वह ऊपर जाता है, नीचे आता है, कई बार गिरने जैसा होता है, एक इंच ऊपर से भी कूदता है, तब हमें ऐसा लगता है कि 'अरे! गिरा, गिरा', इतने में तो वह फिर से बैठ जाता है, वह सहज कहलाता है।
एक्जेक्ट सहजता, लेकिन अज्ञान दशा में प्रश्नकर्ता : गाय-भैंस में भी अहंकार रहता है क्या?
दादाश्री : हाँ! अहंकार तो रहता ही है। अर्थात् अहंकार के बगैर तो उनका भी कुछ नहीं चलता न! लेकिन लिमिटेशन वाला होता है। उनका अहंकार कैसा होता है? चार्ज करे ऐसा नहीं, डिस्चार्ज होने वाला। अर्थात् नया कार्य नहीं करता, पुराने कार्य का निबेड़ा लाता है। गाय-भैंसों