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ले जाता है। केवलज्ञान हो जाने के बाद कोई पुरुषार्थ बाकी नहीं रहता, उसके बाद एकदम सहज भाव ही रहता है
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[11] विज्ञान से पूर्णता के पंथ पर
यदि एक मिनट भी सहज हो गया तो वह भगवान के पद में आ गया। इस अक्रम विज्ञान और दादा भगवान की कृपा से महात्माओं को इस सहज दशा की शुरुआत हो गई है । ये पाँच आज्ञा, इस विज्ञान की समझ हमें निरंतर सहज ही बना रही है और पूर्ण रूप से सहज हो गए अर्थात् भगवान पद।
जब से ज्ञान दिया तब से सहजता बढ़ती जाती है। और अंतिम दशा कौन सी ? आत्मा सहज स्थिति में और देह भी सहज स्थिति में । निश्चय आत्मा तो सहज है, व्यवहार आत्मा को आज्ञा में रहकर सहज करना है और वे दोनों एक हो गए, तब वह कायम के लिए परमात्मा बन जाता है।
सहज पुरुषों के वाक्य संसार के लिए हितकारी होते हैं । अक्रम विज्ञान में सहज होने के ऐसे उपाय हैं!
देह को सहज करना अर्थात् उसकी जो इफेक्ट है उसमें किसी भी प्रकार का दखल नहीं करना । 'मैं कुछ करता हूँ' उस भ्रांति से दखल हो जाता है। 'यह मुझसे नहीं होगा, यह मुझसे हो जाएगा, मुझे यह करना है,' वह सब अहंकार ही है । वही दखल सहज नहीं होने देता। व्यवहार में जब तक संपूर्ण रूप से तैयार नहीं होते तब तक संपूर्ण आत्मा प्राप्त नहीं होता । सहजात्म स्वरूप व्यवहार में अर्थात् किसी की किसी में आमने-सामने दखल नहीं, कि ऐसा होता है या ऐसा नहीं होता। कर्ता पुरुष जो कुछ भी करता है, उसे ज्ञाता पुरुष निरंतर जानता रहता है।
कृपालुदेव कहते हैं कि जीव की सहज स्वरूप की स्थिति का होना, उसे श्री वीतराग मोक्ष कहते हैं । दादाश्री कहते हैं कि हमारी सहज स्वरूप की स्थिति हो गई है । महात्माओं को सहज स्वरूप होना है।
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