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की कृपा और प्रसन्नता) प्राप्त करेगा, कृपा प्राप्त करेगा तो अपने आप ही सहजता आ जाएगी।
___ परम पूज्य दादाश्री की सेवा में, सानिध्य में पूज्य नीरू माँ रहे तो वह सहज दशा उनमें सहज रूप से ही प्रकट हो गई थी। अहंकार और बुद्धि बगैर की दशा! ये दोनों दशा तो ज्ञानी के अलावा कहीं और देखने को ही नहीं मिलती न! लोगों को वीतरागता रखना नहीं आता लेकिन ये जो वीतराग पुरुष हैं वे तो तुरंत ही समझ जाते हैं! फोटोग्राफर भी सहज को देखकर तुरंत ही पहचान जाते हैं और उनके फोटो लेते रहते हैं! ऐसे जगत् के सारे नियम हैं।
जो देह के, मन के, वाणी के मालिक नहीं हैं, ऐसे ज्ञानीपुरुष के पास प्रत्यक्ष समाधि दशा देखने को मिलती है ! यदि कोई उन्हें चाटा मारे तो भी उनकी समाधि नहीं जाती और ऊपर से वे आशीर्वाद देते हैं!
यदि बीच में दखल करने वाला चला गया तो अंत:करण से आत्मा अलग ही है। आत्मा अलग बरतता है और अंत:करण और बाह्यःकरण से सांसारिक कार्य चलते रहते हैं। उसे ही सहज कहते हैं। साहजिक अर्थात् नो लॉ लॉ। जैसे अनुकूल आए वैसे रहे। मुझे लोग क्या कहेंगे, ऐसे विचार भी नहीं आते ! 'मैं करता हूँ' वह भाव ही खत्म हो गया और क्रिया स्वाभाविक होती रहती है, पोटली के जैसे बरतते
यदि पोतापणुं ही नहीं रहेगा तो खुद का मत ही नहीं रहेगा। अर्थात् परायों के मत से चलते रहना, वही साहजिकपना है। रिलेटिव में कुदरत जैसे रखे वैसे रहे और खुद निरंतर साहजिकता में ही रहे। यदि सहज हो जाए तो निरंतर उपयोग में रह सकते हैं। दादाश्री कहते हैं, जब तक हम में साहजिकता होती है तब तक हमें प्रतिक्रमण नहीं करने पड़ते। जब साहजिकता में फर्क होता है तब प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं।
__ज्ञानी का शुभ व्यवहार सहज भाव से होता है और अज्ञानी को शुभ व्यवहार करना पड़ता है। ज्ञानी को त्याग या अत्याग (ग्रहण) की
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