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सहज रूप से स्थिति होनी अर्थात् पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) सही-गलत हो, वह पूरण (चार्ज होना) हुआ माल गलन (डिस्चार्ज होना) होता है, उसे देखने और जानने की ही ज़रूरत है।
अहो कैसा अद्भुत आश्चर्य इस अक्रम विज्ञान का कि संसार की सभी क्रियाएँ हो सकती हैं और आत्मा की भी सभी क्रियाएँ हो सकती हैं! दोनों अपनी-अपनी क्रिया में रहते हैं, संपूर्ण वीतरागता में रहकर!
सहजात्म स्वरूपी इन ज्ञानीपुरुष दादाश्री ने अत्यंत करुणा की है इस काल के जीवों के प्रति, ऐसा आश्चर्यजनक अध्यात्म विज्ञान देकर, बहुत से लोगों का संपूर्ण रूप से कल्याण कर दिया है। ज्ञानीपुरुष का मौन तपोबल अनेकों का कल्याण करके ही रहेगा!
- दीपक भाई देसाई के जय सच्चिदानंद
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