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सहजता
[1] सहज लक्ष' स्वरूप का, अक्रम द्वारा
यहाँ प्राप्त होता है, 'स्व' का साक्षात्कार दादाश्री : 'मैं शुद्धात्मा हूँ', क्या उसका लक्ष (जागृति) निरंतर रहता है?
प्रश्नकर्ता : निरंतर रहता है, दादा। 'मैं शुद्धात्मा हूँ' का लक्ष हमेशा रहता है, चौबीसों घंटे।
दादाश्री : यह अपने लक्ष में रहता ही है, वह आत्मध्यान कहलाता है, वह शुक्लध्यान कहलाता है। वर्ना, एक पल के लिए भी आत्मा याद नहीं रहता। 'मैं शुद्धात्मा हूँ', वह याददाश्त नहीं है, यह तो साक्षात्कार है और अभेदता है।
___ यह आत्मज्ञान मिलने के बाद अब वह 'खुद' सम्यक् दृष्टि वाला बना है। पहले 'खुद' मिथ्या दृष्टि वाला था। जब ज्ञानी इन रोंग बिलीफों (मिथ्या दृष्टि) को फ्रैक्चर कर देते हैं, तब राइट बिलीफ बैठ जाती है। राइट बिलीफ अर्थात् सम्यक् दर्शन । इसलिए फिर ऐसी बिलीफ बैठ जाती है कि 'मैं चंदूभाई नहीं हूँ, मैं शुद्धात्मा हूँ'।
दोनों अहंकार की ही दृष्टि है। पहले वाली जो रिलेटिव दृष्टि थी, वह दृश्य को देखती थी, भौतिक चीज़ों को, जबकि यह रियल दृष्टि चेतन वस्तु को देखती है। चेतन, वह दृष्टा है और बाकी का सब दृश्य है। दृष्टा और ज्ञाता, दोनों चेतन के गुण हैं।