Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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[ प्रन्थ सूची- पंचम माग
८२४. प्रति सं० ५ । पत्र०-१८५ से० काल X अपूर्ण न ०६ प्राप्ति स्थान- बड़ा पंच मंदिर डीन !
८२ ]
२५. प्रति सं० ६ । पत्रसं०- १६६० ११ X १३ । ले० काल य० १७७६ वासोय मुदी । पूर्ण । देष्टन मं०-३० । प्राप्ति स्थान - दि० जैन पंचायती मन्दिर बयाना ।
विशेष हिण्डौन में पं० नरसिंह ने प्रतिलिपि की थी।
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८२६. प्रतिसं० ७ ०२१६०३६३० का पूर्ण २०६६। प्रा स्थान दि० जैन पंचायती मन्दिर करोली |
८२७ प्रतिसं००१११० १०५६ इच दी ११ । पूर्ण वेष्टन सं० १८० प्राप्तिस्थान दि० जैन मन्दिर पंचायती करौली ।
विशेष - लेखक प्रशस्ति विस्तृत है।
२८. प्रतिसं० । पत्र सं० – १५४ ॥ प्र० ११३४
६ | पूर्ण | वेष्टन सं०/१२ प्राप्ति स्थान- दि० जैन मन्दिर सौगारियों का करौली ।
ले०कान सं०-१६०० कार्तिक
० काल १६७० पौष सुदी
८२६. प्रतिसं० १०० १८-२०७ ०काल सं० १७० पोष बुद्दी अपूर्ण वेष्टन सं० १०१-१०: प्राप्तिस्थान- दि० जैन अग्रवाल मन्दिर उदयपुर ।
विशेष प्रत्येक पत्र में १० पंक्ति एवं प्रति पंक्ति में ३१३४ अक्षर हैं।
प्रशस्ति निम्न प्रकार है- संवत १३७० प बुदी १० मा श्री योगिमीपुरस्थितेन साधु श्री नारायण सृत भीम गुप्त श्रावक देवधरेण स्वपठनार्थ तत्वार्थवृति पुस्तकं तिखापितं । तिखितं गोडावय कायस्थ पं० व पुत्र वाडदेवन
निष्णवीकृत जितविहगाः पंचाप्यध्यांका। ध्यानश्वस्तसमस्तकिल्विषविया, यास्त्रां बुध पारगः ।
खोन्यूकिम्वदनिचयाः कारव्य पुष्याः ।
यो भवनीयताः कुर्वन्तु वो मंगणं ॥1
लेखक पाठयोः शुभं भवतु इसके पश्चात् दूसरो ने निम्न प्रशस्ति और दी हुई है--- श्रीमूतमंचे म० श्री सकलकीतिदेवास्तत्पट्टे श्री मुनीतिदेवाः बेली श्री गौतमथी पहल
शुभं भवतु ।
८३०. प्रतिसं० ११ ० १७० | या १०३४ २३ इव । ले० काल -- पूर्ण वे सं० ४८ प्राप्ति स्थान वि० जैन मन्दिर दरवालों का
विशेष - १० १९६२ आसोज सुदी ४ कोटडियों का मन्दिर में ग्रन्य चढ़ाया।
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८३१. सर्वार्थसिद्ध भाषा पं० जयचन्द पसं० २६६ | आ० १३४७ इव । भाषा२० काल सं० १८६१ चैत्र सुदी ५। काल संख्या १०६६ प्राप्तिस्थान- भ० दि० जैन मन्दिर अजमेर ।
राजस्थानी (ढारी) गद्य विषय सिद्धांत माघ खुदी १२ । पूर्ण वेष्टन ० १५६६ (क)
८३२ प्रतिसं० २०२६४ ० का ० १०० पूर्ण मे० [सं०] ५३४ ।