Book Title: Pushkarmuni Abhinandan Granth
Author(s): Devendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
Publisher: Rajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
स्मृतियों के वातायन से
9 साध्वी दिव्यप्रभा एम० ए० साहित्यरत्न
दिन आते हैं और चले जाते हैं, किन्तु वे अपनी मधुर रही थीं। इस समय मैंने विविध विषयों पर आपश्री के स्मृतियां मानस-पटल पर सदा के लिए उट्ट कित कर जाते समक्ष जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की और आपने उन जिज्ञासाओं हैं । जो घटना मर्म को स्पर्श करती है वह भुलाने पर भी का सही समाधान कर, अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय भुलायी नहीं जा सकती। वह प्रतिपल-प्रतिक्षण आँखों के दिया । आपश्री में समाज, संस्कृति, साहित्य और धर्मोत्थान सामने नाचती रहती है। मुझे स्मरण है कि सर्वप्रथम की भावनाएँ अंगड़ाइयाँ ले रही हैं। उसके पश्चात् सन् राजस्थानकेसरी पुष्कर मुनि जी के दर्शनों का सौभाग्य १९७३ में हम आपश्री के दर्शनार्थ अहमदाबाद पहुंची। सन् १९६७ में बम्बई में मिला था। उस समय आप राज- मेरा विचार पी० एच० डी० करने का था और उसके लिए स्थान से विहार कर बम्बई बालकेश्वर वर्षावास के लिए विचार-विमर्श भी करना था। शोधकार्य का अनुभव न आ रहे थे । हम कान्दीवली में स्थित थीं । प्रथम दर्शन में होने से कार्य किस रूप में प्रारम्भ करना चाहिए इस ही मैंने अनुभव किया कि आपका व्यक्तित्व हिमालय की सम्बन्ध में तीन-चार दिन तक आपश्री से वार्तालाप और हिमधवल गगनस्पर्शी चोटियों की तरह उन्नत और श्रद्धा- चर्चाएं होती रहीं। मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि आप सरस्पद है। हिमालय की करुणा जैसे अगणित निर्झर और स्वती पुत्र हैं। आपका पुनीत सानिध्य मेरे लिए वरदान नदियों के रूप में विगलित होती है, उसीप्रकार आपकी रूप रहा है। आपका चिन्तन शरत्कालीन चांदनी के करुणा की धाराएं भी हजारों रूपों में व्यक्त हो रही हैं। समान निर्मल है । आपका लेखन मौलिकता को लिए हुए उस समय एक दिन का सम्पर्क रहा। उसके पश्चात् है। आप जैन समाज के मूर्धन्य मनीषी मुनिवरों में से हैं। कान्दावाड़ी उपाश्रय में पुन: आपके दर्शनों का सौभाग्य अभिनन्दन ग्रन्थ में मैं अपने श्रद्धा के सुमन समर्पित करती मिला और आपके ओजस्वी प्रवचनों को सुनने का भी हुई अपने को भाग्यशाली समझ रही हूँ। मेरी हार्दिक मंगल अवसर प्राप्त हुआ। आपके प्रवचनों में विषय की गम्भी- कामनाएँ हैं कि रता के साथ ही सरसता का जो मणिकांचन-संयोग है
प्रज्ञा-श्रुत सेवा की मूर्ति, उसने मेरे मन को मुग्ध कर दिया।
मुनिवर तुमको वन्दन । सन् १९६६ में पुनः आपके दर्शनों का सौभाग्य हमें
मंगल स्वर्ण जयन्ती अवसर, अहमदनगर में मिला । यहाँ पर आत्मार्थी मोहन ऋषिजी
हम सब का अभिनन्दन ॥ महाराज तथा सद्गुरुणी जी श्री उज्ज्वलकुमारी जी विराज भाव-कलियाँ
-साध्वी प्रीतिसुधा साहित्यरत्न उपाध्याय जी श्रमण संघ के
युक्त की जाने वाली संयम साधना तथा तपाराधना को आज आपका है अभिनन्दन । कौन नहीं जानता। जंगम "पुष्कर" तीरथ को हम ।
जिनवाणी की गगनभेदी सिंह गर्जना करते हुए जिस करें "प्रीतियुत" शतशत वंदन ।। महान् सन्त ने मारवाड़, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,
उत्तरप्रदेश आदि क्षेत्रों को अपने पावन पदपयों से पवित्र जैन जगत के दैदिप्यमान भास्कर, उपाध्याय पूज्य किया हो, तथा हजारों श्रद्धालुओं में अध्यात्म दीप जलाने श्री पुष्कर मुनि जी महाराज की अप्रतिम आत्म विश्वास का महत् कार्य किया हो उन्हें कौन नहीं मानता !!
मारवाड़, गुजपने पावन पर दीप जला
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