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लेकिन यह बहुत बड़ी विकसित भाषा है। बिलकुल आरंभ से ही इसके लिए प्रयत्न मत करना क्योंकि तब तुम स्वयं को धोखा दे सकते हो। धीरे- धीरे आगे बढ़ो। जहाँ कहीं भरोसा बने, श्रद्धा घटित हो, आंखें बंद कर लेना और आंखें मूंद पीछे हो लेना। वस्तुत: जिस घड़ी श्रद्धा घटित होती है तुमने आंखें बंद कर ली होती हैं। तब तर्क करने या सोचने का प्रयोजन क्या है? श्रद्धा घटित हो गयी है और श्रद्धा अब कोई बात सुनेगी नहीं।
तब पीछे चलो और गुरु के निकट बने रहो, जब तक कि वह स्वयं तुम्हें दूर न भेजे। और जब वह स्वयं तुम्हें दूर भेजता है, तब चिपके मत रहो, तब आगे बढ़ो। उसके अन्देश पर चलो और दूर चले जाओ, क्योंकि वह बेहतर जानता है। वह जानता है कि क्या उपयोगी है।
कई बार कठिन हो सकता है गुरु के निकट विकसित होना। जैसे कि बड़े वृक्ष के नीचे एक नये बीज को विकसित होने में कई कठिनाइयां आयेंगी। एक बड़े वृक्ष के नीचे, एक नया. वृक्ष अपंग हो जायेगा। वृक्ष तक भी ध्यान रखते हैं कि अपने बीज बहुत दूर तक फेंकेता कि वे बीज फूट सके। बीजों को दूर भेजने के लिए वृक्ष कई युक्तियां प्रयोग करते है, वरना यदि बीज बड़े वृक्ष के नीचे गिर जाये, तो वह मर जायेगा। वहाँ इतनी अधिक छांव है। वहाँ कोई सूर्य नहीं पहुंचता सूर्य की किरणे नहीं पहुंचती वहा।
तो गुरु तुम से बेहतर जानता है। यदि वह अनुभव करता है कि तुम्हें दूर जाना चाहिए, तो बाधा मत डालना। तब बस मान लेना और चले जाना। यह दूर चले जाना गुरु के और अधिक निकट आना हो जायेगा। यदि तुम स्वीकार कर सकते हो बिना किसी प्रतिरोध के, तो यह दूर चले जाना और अधिक निकट आना होगा। तुम एक नयी निकटता उपलब्ध करोगे।
छठवां-प्रश्न:
जब आप कोई बात स्पष्टत: समझने के लिए हमसे कहते हैं तब आप किसे संबोधित कर रहे होते हैं? मन को तो समाप्त होना है इसलिए मन को कुछ समझाने का तो कोई उपयोग नहीं। तब किसे समझना चाहिए?
हा, मन को समाप्त होना है। लेकिन अभी यह समाप्त हुआ नही। मन पर कार्य करना
होगा। एक समझ मन में निर्मित करनी है। उस समझ के द्वारा मन मर जायेगा। वह समझ विष की भांति है। तुम विष लेते हो। तुम्ही हो जो विष लेते हो, और तब वह विष तुम्हें मार डालता है।