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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- २
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जीवन में उतरा जा सकता है या नहीं। मेरी इस जांच-पड़ताल का भी कोई अर्थ नहीं है क्योंकि मैं इसलिए कह ही नहीं रहा हूं कि मैं सही हूं या गलत हूं, या कुछ सिद्ध किया जाए। कह इसलिए रहा हूं कि तुम जहां हो वहां से सरक सको, और किसी दूसरी दिशा में गति कर सको। इसलिए यदि सारी बातचीत तुम्हें अन्तर्दशा में गति देने वाली बन जाती है तो मैं मान लूंगा कि काफी प्रमाण हो गया है। और अगर नहीं बनती है और सब तरह से प्रमाणित हो जाता है कि जो मैंने कहा वह ठीक था तो मैं मानूंगा कि बात अप्रामाणिक हो गई । यानी, मेरे लिए अर्थवत्ता इसमें है कि महावीर के जीवन के सम्बन्ध में मैं जो कहूं वह किसी रूप में तुम्हारे जीवन को रूपान्तरित करने वाला बनता हो । न बनता हो तो वह कितना भी सही हो गलत हो गया और बनता हो तो सारी दुनिया सिद्ध कर दे कि वह गलत है, तो मेरे लिए वह गलत न रहा । इसका मतलब यह है; और इसका समझना बहुत उपयोगी होगा, और यही वजह है कि जो लोग जानते रहे हैं उन्होंने इतिहास लिखने पर जोर नहीं दिया । इतिहास की जगह उन्होंने पुराण ( मिथ ) पर जोर दिया। एक दुनिया है, लोग हैं, जो इतिहास पर जोर दे रहे हैं, एक दूसरी दुनिया है, दूसरा जगत् हैं, कुछ थोड़े से लोगों का, जो इतिहास पर जोर नहीं देते, जो पुराण पर जोर देते हैं । और दोनों का अन्तर समझना उपयोगी होगा ।
इतिहास का आग्रह है कि बाहर घटी घटनाएं तथ्य ( फैक्ट्स ) की तरह संगृहीत की जाएं । पुराण इस बात पर जोर देता है कि बाहर की घटनायें तथ्य की तरह इकट्ठी हों या न हों, निष्प्रयोजन हैं । वे इस भांति इकट्ठी हों कि जब कोई उनसे गुजरे तो उनके भीतर कुछ घटित हो जाएं। इन दोनों बातों में दृष्टि अलग हैं । तथ्य और इतिहास को सोचने वाला महावीर पर जोर देगा, क्राइस्ट पर जोर देगा - कैसा जीवन ! पुराणकथा ( मिथ ) की दृष्टि वाला व्यक्ति 'तुम' पर जोर देगा कि महावीर का कैसा जीवन कि 'तुम' बदल जाओ। इसमें बुनियादी फर्क पड़े हैं ।
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यह हो सकता है कि पुराण ( मिथ ) किसी दृष्टि से अप्रामाणिक मालूम पड़े। जैसे जीसस का सूली पर चढ़ना और फिर तीन दिन बाद जीवित हो जाना । ऐतिहासिक तथ्य की तरह शायद इसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता कि ऐसा हुआ हो-जैसे जीसस का कुंमारी मां से पैदा होना । ऐतिहासिक तथ्य