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महापुराण
सन्धि ११
२३६-२७३ (१) संज्ञोपर्याप्त जीव । (२) विभिन्न योनियोंके जीव; उनकी आयु (३) भरत आदि क्षेत्रोंका वर्णन । (४) हरिक्षेत्रादि वर्णन । (५) हिमवत् पद्म सरोवरका वर्णन । (६) पद्म-महापद्म आदि सरोवरोंका वर्णन । (७) जम्बूद्वीपके बाहरके अन्तर्वीप और उनके जीवोंका वर्णन । (८) भवनवासी आदि देवोंका वर्णन । (९) पन्द्रह कर्मभूमियोंका वर्णन, मरणयोनिका वर्णन । (१०) कौन जीव कहाँसे कहा जाता है, इसका वर्णन । (११) जीवोंके एक गतिसे दूसरी गतिमें जानेका वर्णन । (१२) नरकवासका वर्णन । (१३) नरकों के विभिन्न बिलोंका कथन । (१४-२०) नरककी यातनाओंका वर्णन । (२१-२२) पाँच प्रकारके देवोंका वर्णन । (२३) स्वर्गविमानोंका वर्णन । (२४) विविध प्रकारके देवोंका वर्णन । (२५) देवोंकी ऊँचाई आदिका चित्रण । (२६) विभिन्न स्वर्गों में कामकी स्थितिका वर्णन । (२७) सर्वार्थसिद्धिके देवोंका वर्णन । (२८) नरक देवभूमियों में आहारादिका वर्णन। (२९) योगवेद और लेश्याओंके आधारपर वर्णन । (३०) कर्मप्रकृतिके आधारपर ऊंच-नीच प्रकृतिका वर्णन । (३१) कषायोंकी विभिन्न स्थितियोंका चित्रण । (३२) पाँच प्रकारके शरीरोंका वर्णन । (३३) मोक्षका स्वरूप, आत्माकी सही स्थितिका चित्रण । (३४) सच्चे सुखके स्वरूपका वर्णन; वृषभसेन द्वारा शुभ भावका ग्रहण ।
सन्धि १२
२७४-२९७
(१) भरतकी विजय यात्रा, शरद् ऋतुका वर्णन । (२) प्रस्थान । (३) राजसैन्यके कूचका वर्णन । (४) सैन्य सामग्रीका वर्णन, चौदह रत्नोंका उल्लेख । (५-७) भरतका प्रस्थान; सेनाके साथ जानेवाली स्त्रियोंकी प्रतिक्रिया; गंगानदोका वर्णन । (८) नदीको देखकर भरतका प्रश्न; सारयिका उत्तर, सेनाका ठहरना । (९) पड़ावका वर्णन । (१०) रात्रि बिताना, प्रातः पूर्व दिशाकी ओर प्रस्थान । (११) गोकुल बस्ती में प्रवेश, वहाँकी वमिताओं पर प्रतिक्रिया। (१२) शबरबस्तीमें। (१३) भरतका दर्भासनपर बैठना । (१४) समुद्रका समर्पण । (१५) समुद्रका चित्रण । (१६) भरतका बाण । (१७) मागध देवका क्रुद्ध होना । (१८) मागधदेवका आक्रोश । (१९) भरतके बाणके अक्षर पढ़कर क्रोध शान्त होना । (२०) मागधदेवका समर्पण ।
सन्धि १३
२९८-३११ (१) भरतका वरदाम तीर्थ के लिए प्रस्थान । (२) उपसमुद्र और वैजयन्त समुद्रके किनारे राजाका ठहरना, सैन्यका श्लेषमें वर्णन, राजा द्वारा उपवास, कुलचिह्नों और प्रतीकोंकी पूजा । (३) सूर्योदय, धनुषका वर्णन । (४) धनुषका श्लिष्ट वर्णन । (५) वरतनुका समर्पण (६) भरत द्वारा बन्धनमुक्ति और पश्चिम दिशाको ओर प्रस्थान, सिन्धुतटपर पहुँचना । (७) सिन्धुनदीका वर्णन ( श्लेष में); भरतका डेरा डालना। (८) सन्ध्या और रातका वर्णन, सूर्योदय । (९) भरत द्वारा उपवास और प्रहरणोंकी पूजाके बाद लवण समुद्रके भीतर जाना; बाणका सन्धान करना, प्रभासका आत्मसमर्पण । (१०) विजयार्द्ध पर्वतकी ओर प्रस्थान; म्लेच्छोंपर विजय; विभिन्न जनपदोंको जीतकर विजयार्द्ध पर्वतके शिखरपर आरूढ़ होना; विजयार्द्धकी पराजय । (११) सेनाका पड़ाव; विन्ध्याके गजका नाश ।
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