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१५. १०. २०]
हिन्दी अनुवाद इन्द्राणी निवास करती है। चंचल हारमणिवाली जो लोगोंके मनका दमन करनेवाली है। पूर्णिमाके चन्द्रमाके समान मुखवाली जो कमलनयनी है। उत्तम गजके समान चलनेवाली, जिनेन्द्र भगवान्का अभिषेक करनेवाली, अत्यन्त सुन्दरी स्थूल स्तनोंवाली, कमलोंके समान चरणवाली, सिरमें फूल गूंथनेवाली, प्रसरित पुलकवाली, व्यन्तरकुलमें उत्पन्न हुई, तिलकको रचनावाली, कामदेवकी घर, जिसके चरणोंपर नर नत हैं, ऐसी चंचल मकरध्वजवाली, मुनियोंकी बुद्धिके समान पवित्र हिम-किरणोंकी तरह धवल
घत्ता-गंगा नामकी नेत्रोंको प्यारी लगनेवाली सती सुरसुन्दरी थी, जिसने अपने रूप और यौवनसे देवोंको आश्चर्यमें डाल दिया था ||९||
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नरपतिके गुणोंसे विस्फुरित चरितको हृदयमें धारण कर, त्रिवलो तरंगोंवालो देवी गंगा तुरन्त चली। सालंकार धीर भुवनमें विख्यात मंगल हाथमें लेकर वह प्रीतिभावसे राजाके समीप पहुँची । दुःस्थितोंके मित्र, परकल्याणसे युक्त विश्वगुरुके पुत्र, कमलनयन, उत्तम सत्त्ववाले, गुरुजनोंके भक्त, विवेकशील, भेदको जाननेवाले, दानकर्ता, संग्राम करनेवाले, दुष्टकुलके लिए प्रचण्ड, दण्डका प्रदर्शन करनेवाले, कान्ति और लक्ष्मीके स्वामी, रमणियोंके द्वारा काम्य, प्रकटनाम, लज्जाकी श्रीसे रहित भरतको उसने देखा। फिर भक्तिसे भरी हुई कुसुम हाथमें लिये हुए, स्तोत्रोंकी वाणीमें प्रणाम करते हुए, आशीर्वाद देते हुए उस स्त्रीने.. घत्ता-राजाके सिरपर अमृतसे भरा हुआ कलश इस प्रकार उड़ेल दिया मानो पश्चिम दिशामें स्थित चन्द्रमापर पूर्णिमाने कलश उड़ेल दिया हो ॥१०॥
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