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१६. १९.८] हिन्दी अनुवाद
३७१ पत्ता-कलश हाथमें लेकर गंगानदी वहां पहुंची, लोगोंको वह ऐसी दिखाई दी जैसे स्नान करनेकी इच्छा रखनेवाले राजाके निकट स्नान करानेवाली दासी खड़ी हो ॥१७॥
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आकाशगामी नमि-विनमि नामके विद्याधर स्वामी हृदयमें शल्य धारण कर, बिना किसीके मदके जिसके वशीभूत हो गये, जिसने फिर विजयाध पर्वतको वज्रसे आहत किया, जिसने पूर्वकिवाड़का उद्घाटन किया, जिसने नृत्यमालको सिद्ध किया और मालाकरको एक प्राकृत जनकी तरह अपने दोनों पैरोंमें गिरनेके लिए बाध्य किया। उसके साथ असम ( विषम ) वैर क्याजो ऊर्ध्वमुख मनुष्यको रिक्त करता है वह पिच्छी और कमण्डलसे मण्डित हाथवाले मनुवर-समूहको भी क्रोध उत्पन्न कर देता है। वह गुणरूपी मणियोंका समुद्र चक्रवर्ती है। आओ भाईको चलकर देखें। उसके क्रोधकी आग न भड़के और तुम्हारा बाहुबल न जले, हा तुम हाथीके दांतोंसे विभक्त न हो, पोदनपुरके परकोटे नष्ट न हों, दिशाको मर्यादाओंको आच्छादित करनेवाला, घोड़ोंके खुरोंसे क्षत धरतीका धूल-समूह न उछले, महान् महारथ न दौड़े, दुष्टोंके मनोरथ पूरे न हों। मनुष्योंके कपालके ऊपर कौआ न बोले। प्रलयकाल रक्तको न खींचे ? इसलिए दर्पहीन होकर कर दो, और भावपूर्वक प्रणाम कर भरतसे मिलो। बाहुबलीश्वरने यह सुनकर भौंहोंके संकोचसे भयंकर वह बोला
पत्ता-मैं कन्दर्प ( कामदेव ) हूँ, अदर्प ( दर्पहीन) नहीं हो सकता। मैंने दूत समझकर मना किया। मेरे संकल्पसे वह राजा निश्चित रूपसे दग्ध होगा ||१८||
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पापोंको नाश करनेवाले महर्षि ऋषभने जो सीमित नगर देश दिये हैं वह मेरे कुलविभूषित लिखित शासन है, उस प्रभुत्वका कौन अपहरण करता है ? सिंहकी अयाल, उत्तम सतीके स्तनतल, सुभटकी शरण और मेरे धरणीतलको जो अपने हाथसे छूता है, मैं उसके लिए यम और कालानलके समान हूँ ? मैं उसे प्रणाम करूं, वह कौन है ? धरतीखण्डसे कौन-सी परम उन्नति कही जाती है। क्या जन्मके समय, देवोंने उसका अभिषेक किया? क्या सुमेरु पर्वतपर उसकी पूजा
की गयी? क्या उसके सामने सुरपति नाचा। वह स्वेच्छाचारिणी लक्ष्मीसे इतना रोमांचित क्यों .. है? वह चक्रदण्ड उसीके लिए श्रेष्ठ हो सकता है, मेरे लिए तो वह कुम्हारका चक्का है। हाथी
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