Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 549
________________ अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद III [ जैन पुराणोंमें जिनके जन्मका वर्णन इतने एकरूप ढंगसे वर्णित है कि कभी-कभी हमें यह सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि हम इतिहासके बजाय पौराणिक कथामें हैं । जब जिनवरके माता-पिता कृतसंकल्प होते हैं तो इन्द्र कुबेरको सुन्दर नगरीको रचना करनेका आदेश देता है; जन्म लेनेके पूर्व वह स्वर्ग में जन्म लेते हैं । उनके जन्मके छह माह पूर्व इन्द्र छह देवियां भेजता है; वे जिनेन्द्रकी माताके पास आती हैं और सेवाके लिए प्रतीक्षा करती हैं; माँ सोलह सपने देखती है, ( श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार चौदह ) वह अपने स्वामीसे इनका फल पूछती है दूसरे दिन सवेरे । तब पति उसे फल बताता है । पृष्ठ 4-23 उसका सार यह है कि माता ऋषभको जन्म देगी। जिन ( प्रथम तीर्थंकर ऋषभ, एक सफेद वृषभके रूप में) गर्भ में जन्म लेते हैं । देव इस घटना में उपस्थित होते हैं । कुबेरके द्वारा रत्नोंकी वर्षा की जाती है । उचित समयपर जिनका जन्म होता है। इन्द्रके नेतृत्वमें देवता जन्म-स्थानपर आते हैं और प्रार्थना करते हैं, इन्द्र माताको मायावी बालक देता है और जिनको सुमेर पर्वतपर ले जाता है । उन्हें सिंहासनपर स्थापित करता है; उनका जन्माभिषेक किया जाता है। पहाड़के ऊपर बढ़ते हुए अभिषेक जलका सभी वन्दना करते हैं; जिनेन्द्रकी प्रशंसामें इन्द्र कुछ पद्य पढ़ता है; वह उन्हें वापस माता-पिताके पास लाता है; इस घटनाको सामान्यतः कल्याण कहा जाता है, खासकर जिन- जन्माभिषेक कल्याण, इन घटनाओंका जिनके जीवन में एकरस वर्णन किया जाता है । परन्तु पुष्पदन्त अपनी काव्य-प्रतिभासे उसे सजीव विस्तार देते हैं । प्रथम तीर्थंकरके जीवनकी प्रमुख विशेषताएं हैं ] (I) जन्म-स्थान - अयोध्या (II) मातापिता - नाभि और मरुदेवी | ( II1 ) धवल वृषभके रूपमें गर्भ में अवतार । (IV) अवतारतिथि आषाढ़ कृष्णपक्ष द्वितीय, दिन रविवार, उत्तरा नक्षत्र, ब्रह्मयोग । (V) जन्म तिथि - चैत्र कृष्ण पक्ष नवमी, उत्तरा नक्षत्र, ब्रह्मयोग | ( VI ) नाम - ऋषभ या वृषभ । 4. 9a णिवप्रंगणंति = राजाके प्रांगण में यद्यपि प्राकृत संयुक्त व्यंजनोंकी अनुमति नहीं देती, फिर भी महापुराण में बहुत-से संयुक्त व्यंजन मिलते हैं । हेमचन्द्रका IV पृष्ठ 398-99 सिद्ध हेम व्याकरण देखिए । हमारी पाण्डुलिपियों ( G और K ) में र् के साथ संयुक्त व्यंजन है, जबकि 'MBP' में नहीं है । इसलिए मैंने G और K को अपने टेक्स्टके प्राचीन रूपको सुरक्षित रखनेवाला सोचा है । इस कारण, और ॠ वाले रूपको रखनेके कारण जैसे मृग, सृय इत्यादि । 5. यह कड़वक उन सोलह वस्तुओंके नाम गिनाता है कि जिन्हें जिनेन्द्रको माता स्वप्न में देखती है और जो जिनेन्द्रके जन्मका पूर्वाभास देती है । श्वेताम्बर परम्परा दिगम्बर परम्परासे इस अर्थ में है । वह केवल चौदह स्वप्नोंका उल्लेख करती है । कल्पसूत्र 4, and 32-47. पृष्ठ 424 दिगम्बर परम्परा के अनुसार ये वस्तुएँ हैं— (1) पर्वतकी ढालको तोड़ता महागज । Jain Education International ४६३ (2) जोरसे गर्जन करता हुआ एक वृषभ । ( 3 ) गरजता सिंह । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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