Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 555
________________ XIII.] अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद उपदेश देना शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने पर्याप्तियोंका कथन किया। पर्याप्ति यानी विकासका निकाय । फिर वह निम्न श्रेणीके जीवोंका वर्णन करते हैं। फिर पाँच इन्द्रियोंवाले निम्न श्रेणीके जीवों का । फिर विभिन्न द्वीपों और समुद्रोंका वर्णन करते है और अन्त में उनके विस्तार का।] पृष्ठ 438 XI [ ऋषभ जिन भगवान्, इसके बाद विभिन्न इन्द्रियोंके कार्यों और प्राणियोंका वर्णन करते हैं कि जो उन्हें धारण करते हैं, फिर उनकी आयुका वर्णन करते हैं । जम्बूद्वीपके सामान्य भूगोलका, उसके द्वीपोंउपद्वीपों और नदियोंका वर्णन करनेके बाद; ऋषभ जिन मानवी विशेषताओं और उनके गुणोंका वर्णन करते हैं। फिर वे स्वर्ग और देवोंका विस्तारसे वर्णन करते हैं, फिर विभिन्न गुणस्थानों और कर्मप्रकृतियों और सिद्धोंकी विशेषताओं और सुखोंका वर्णन करते हैं। जिनेन्द्र भगवान्का उपदेश सुनकर चौरासी लाख राजाओंने दीक्षा ग्रहण कर ली। जो उस समय उनके गणधर कहलाते थे। इसी प्रकार ब्राह्मी और सुन्दरी भी साध्वी बन गयीं। अकेला मारीचिको बोध नहीं हो सका। उनके पहले शिष्य सुयक्ती थे और शिष्या पियंवया या प्रियंवदा । उनके पहले मुक्ति प्राप्त करनेवाले शिष्य अनन्तवीर्य थे। पृष्ठ 440 XII [अब भरतने भारतवर्षके छह खण्डोंपर दिग्विजय प्राप्त करनेके लिए कूच किया। शरद् ऋतुमें, जब आसमान स्वच्छ था और सड़कें सूखी थीं। वह पवित्र लोगोंकी वन्दना करता है और चक्रकी परिक्रमा देता है, तथा गरीब एवं जरूरतमन्द लोगोंको दान करता है। उसने अपने मन्त्रियोंसे मन्त्रणा की। उसने बहुत बड़ी सेना ली और चक्रके साथ वह पूर्वी समुद्र के किनारे गया, वह मगध तीर्थपर विजय प्राप्त करना चाहता था। पहले उसने उपवास किया, और तब धनुष ग्रहण कर पूर्वदिशामें तीर चलाया। तीर राजाके घरमें गिरा, राजा उसे देखकर बहुत क्रुद्ध हमा; परन्तु उसके मन्त्रियोंने किसी प्रकार यह कहकर उसे शान्त किया कि चक्रवर्तीसे युद्ध करने में कोई लाभ नहीं है, और यह सबके हितमें होगा कि उन्हें सम्मान देकर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली जाये। मगध तीर्थक राजाने ऐसा ही किया।] XIII [ उसके बाद भरत दक्षिणकी ओर गया और ( वरतनु ) वरदामा तीर्थक केन्द्र पर पहुँचा। उसने फिर एक उपवास किया, और उसके बाद तीर चलाया; जो वरतनुके घरके आंगनमें गिरा। राजा वरतनु शीघ्र ही भरतके पास प्रणतिपूर्वक आया और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। उसके बाद भरत पश्चिम दिशाको बोर गया और सिन्धु नदीके प्रवेशद्वारपर पहुँचा। उसने वहाँ भी उपवास किया । और लवणसमुहमें रास्ता बनानेके लिए प्रभास तीर्थके राजापर तीर छोड़ा। राजा आया और उसने भरतको अधीनता स्वीकार कर की। उसके बाद भरतने कई देशोंपर विजय प्राप्त की, जैसे मालवा इत्यादि । और इस प्रकार एमावतीवर अपना सामाण्य स्थापित किया। उसके बाद भरत विजयार्ष पर्वतपर गया तीन खण्डोंकी अपनी बाकी विजय पूरी करने के लिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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