Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 557
________________ XVIII. ] अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद ४७१ XVI [ऋषभ जिनकी वन्दना करनेके बाद भरत कैलास पर्वतसे नीचे उतरा । उसने अयोध्याके लिए कूच किया; कई देशोंको पार कर वह अयोध्याके प्रवेशद्वारपर पहुँचा, उसके चक्रने अयोध्या में प्रवेश नहीं किया। पुरोहितने बताया कि चक्रने इसलिए प्रवेश नहीं किया क्योंकि तुम्हारा छोटा भाई बाहुबलि अभी तक नहीं जीता गया और इसलिए तुम्हारी विजय अधूरी है। बाहुबलि बहुत बलवान् है और सम्भवतः भरतको हरा सकता है। परन्तु वह शान्त है। और तुम्हारे दूसरे भाई भी तुम्हें कर नहीं देते । यह सुनकर भरत नाराज हुआ। उसने भाइयोंके पास दूत भेजे कि वे उसकी अधीनता स्वीकार कर लें। भाइयोंने यह स्वीकार करनेके बजाय कैलास पर्वतपर जाना उचित समझा। बाहुबलिने अधीनता स्वीकार न करते हुए लड़नेकी चुनौती दे डाली।] XVII [भरतने घोषणा की कि यद्यपि वह बाहुबलिको नहीं मारता है क्योंकि यह पिताके प्रति अपराध होगा, फिर भी वह उसे हाथीकी तरह बेड़ियोंमें जकड़ देगा। भरत और बाहुबलिकी सेनाएं आमने-सामने आ खड़ी हुई, युद्धके नगाड़े बज उठे। बाहुबलिने अपने मन्त्रीसे कहा कि वह अपने स्थानसे एक भी कदम नहीं बढ़ेगा परन्तु भरतकी सेनाको प्रगतिको रोक देगा। जब दोनोंकी सेनाएं टकरानेको थीं, मन्त्रियोंने उन्हें रोक दिया क्योंकि इससे भयंकर विनाशकी सम्भावना थी। उन्होंने दोनोंसे द्वन्द्व युद्ध करनेको प्रार्थना की। युद्धके तीन प्रकार थे-दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध और मल्लयुद्ध । दोनोंने इसे स्वीकार कर लिया। परन्तु सभी तीनों युद्धोंमें भरत बाहुबलिसे हार गया। जब भरतको बाहुबलिने उठा लिया तो उसने अपने चक्रका ध्यान किया जो शीघ्र बाहुबलिकी परिक्रमा कर उनके दायीं तरफ स्थित हो गया। बाहुबलिने अपने भाई भरतको जमीनपर उतार दिया।] XVIII [भरतको अपने बाहुओंपर उठाते हुए बाहुबलिने उसे तीसरी बार पराजित किया। बाहुबलिने अनुभव किया कि उसने अपने बड़े भाईका अपमान किया है जो कि चक्रवर्ती है। इसलिए उसने भरतसे क्षमा मांगी और दीक्षा ग्रहण करने की इच्छा प्रकट की। भरतने किसी भी प्रकार भाईका राज्य लेनेकी इच्छा नहीं की, खासकर तब जब उसे यह याद आया कि उसे सेनाके सामने पराजित किया गया है। इसलिए उसने बाहुबलिको राज्य देना चाहा और स्वयं सांसारिक जीवनसे संन्यास लेना चाहा। बाहुबलि इसके लिए तैयार नहीं था। मन्त्रियोंने हस्तक्षेप किया और बाहुबलिने अपने पुत्रोंको गद्दीपर बैठाया। वह कैलास पर्वतपर गया तपस्या करनेके लिए। उसने वहाँ एक वर्ष तप किया । भरत उससे मिलने और प्रशंसा करने आया । बाहुबलि तटस्थ रहे। वह उन योग्यताओंको सम्पादित करने में लगे रहे जो एक जैन मुनि अजित करता है। समय बीतनेपर बाहुबलिको केवलज्ञान प्राप्त हो गया इससे सभीको प्रसन्नता हुई। भरतको भी प्रसन्नता हुई कि उनका भाई केवली हो गया। इसके बाद भरतने छह खण्ड धरतीपर छह खण्ड राज्यका परिपालन किया।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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