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VIII. 1 ]
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अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद
10. यह मानव-जीवन यदि श्मशानमें जाता है तो जाये, जैसा कि हम मराठीमें कहते हैं 'मसणांत' जावो। मैं मानव-जीवनको तिनकेके बराबर समझता हूँ।
11. 1-तिप्पयार संठाणयं शब्द तीन भागों में विभक्त है, प्रत्येकका अलग-अलग रूप है; नरकमें राक्षसों और प्राणियोंके क्षेत्रका आकार 'शराब' जैसा है, जो उलटा हुआ है; मनुष्यों और छोटे प्राणियों के क्षेत्रका आकार वज्रमणिका है । देवोंके क्षेत्रका आकार मृदंगका है ।
9a मुक्त आत्मानोंके क्षेत्रका स्थान छत्रके वाकारका है ।
14. यदि मनुष्य कर्मों के आसवको रोक देता है और सम्यक् आचरण करता है, तो नये कर्म आत्मामें नहीं आते, और जो कर्म पूर्वसंचित है, वे शरीर कष्टसे नष्ट हो जाते हैं और उन्हें कोई प्रवय नहीं मिलता ।
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15. मैं दिगम्बर मुनि बनूँगा । इस शब्दका प्रभावशाली और स्पष्ट वर्णन, यहाँ और २६वें कड़वकमें है ।
156 नीचे और अन्य स्थानोंके वर्णनसे स्पष्ट है कि इस ग्रन्थकी रचना दिगम्बर जैन मुनिके दृष्टिकोणसे हुई है ।
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16 12-13 जिस प्रकार तालाब सूर्यको किरणोंसे सूख जाता है, और उसमें रहनेवाला पानी भी सूख जाता है उसमें नये पानीके आनेका स्रोत नहीं रहता और तालाबका बनना रुक जाता है उसी प्रकार पूर्वमें अनेक जन्मोंके किये गये कर्म इन्द्रियोंके संयमसे रुक जाते हैं [ वह कमौके आगमनके ज्ञानको रोक देता है, और तपस्याके द्वारा ( जो मुनियोंके लिए निर्धारित है ) ]
26. यह अवतरण निष्क्रमणकी तिथिका सूचक है जो उत्तराषाढ़ा नक्षत्र है ।
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VIII
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[ इसके बाद ऋषभनाथने मुनिकी तपस्या प्रारम्भ की और उसके लिए निर्धारित आचरणके नियमोंका पालन किया। राजा कच्छ और महाकच्छके बेटे नमि और विनमि तथा ऋषभनाथके साले उनके पास जंगलमें आये तथा उनकी स्तुति करनेके बाद वे बोले कि ऋषभने उन्हें घरतोका कोई भाग नहीं दिया जबकि अपने पुत्रोंको सारी धरती बाँट दी। दरअसल, मुनिके रूपमें वह कोई उत्तर नहीं दे सकते थे, क्योंकि संसारके कार्योंका उन्होंने पूर्णतः परित्याग कर दिया था। इस अवसर पर नागोंके राजा धरणेन्द्रको कम्पन हुआ और अवधिज्ञानसे उसने जान लिया कि ऋषभ इस समय कठिन स्थितिमें हैं । इसलिए वह उनके पास आया; उसने नमि और विनमिको उनके पास खड़ा देखा। उसने उन लोगोंस कहा - " ऋषभ ने दीक्षा लेनेके पहले उससे कहा था कि जब वे (नमि-विनमि) मेरे पास आयें और धरतीका हिस्सा माँगें, तब घरणेन्द्र उन्हें विजयार्ध पर्वतको उत्तर-दक्षिण श्रेणियां दे दें । तब धरणेन्द्रने उन्हें विजयार्धपर स्थित कई नगरियाँ दिखलायीं और इस प्रकार धरणेन्द्र ऋषभ जिनको कठिन स्थितिसे बचाकर घर चला गया । ]
1. 90 मैं सोचता हूँ सिमिर शिविरसे बना है । अर्थ है सेनाका कैम्प, परन्तु यहाँ सेनाके लिए
प्रयुक्त है।
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