Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 551
________________ V. 12 ] 17. जैसे दूधसे धोया हो । 18. नृत्यके विविध पारिभाषिक शब्दोंका उल्लेख । पृष्ठ 426 अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद पारिभाषिक शब्द मूल संस्कृत में दिये गये हैं, अतः अनुवादको आवश्यकता नहीं । पृष्ठ 427 V [ एक दिन ऋषभकी पत्नी यशोवतीने स्वप्नमें सुमेरुपर्वत, सूर्य और समुद्रको देखा, तथा धरतीको अपने मुखमें प्रवेश करते हुए देखा । उसने यह स्वप्न ऋषभको बताया । उन्होंने बताया कि उसे पुत्रकी प्राप्ति होगी । जो सार्वभौम राजा होगा । समयके अन्तरालमें यशोवतीने पुत्रको जन्म दिया, जिसका नाम भरत रखा गया । जैसे ही बच्चा बड़ा हुआ पिताने उसे अनेक विद्याएँ सिखायीं । विभिन्न कलाएँ, प्रशासन चलाना, विभिन्न वर्गों और जातियोंके कर्तव्य और अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहारके सम्बन्धोंका ज्ञान कराया । यशोवतीके ९९ पुत्र और हुए; और एक कन्या ब्राह्मी उत्पन्न हुई । सुनन्दाके भी एक पुत्र बाहुबलि हुआ, और सुन्दरी कन्या । ब्रह्मा (आदिनाथ ) ने स्वयं दोनों कन्याओंको साहित्य और विविध कलाओंका ज्ञान कराया । एक बार भयंकर अकाल पड़ा उससे प्रजामें संकट पड़ गया। वे ऋषभके पास आये और उन्होंने राहतकी अपील की । ऋषभने उन्हें व्यवसायको विविध कलाओंका ज्ञान कराया। जब वे २० लाख पूर्व वर्ष के हुए, नाभिराजने उन्हें गद्दीपर बैठा दिया । ] 2. 86 भारतवर्षके छह खण्ड । जैन भूगोल विद्याके अनुसार यह भारतवर्ष उत्तरमें हिमवन्त पर्वतसे घिरा इसके ठीक बीचोंबीच केन्द्रसे विजयार्ध पर्वत गुजरता है । पूर्वसे पश्चिम गंगा-सिन्धु नदियाँ प्रवाहित हैं । इससे उत्तर-दक्षिण क्षेत्र बनता है । इस रूपमें यह छह खण्डों में विभक्त है । चक्रवर्ती इन छह खण्डोंपर शासन करता है । अहमेन्द्र बहुत ऊँचा देव है जो ग्रैवेयक विमानमें रहता है । 3. 2 गर्भावस्था में यशोवतीके उदरकी तिरेखाएं समाप्त हो गयीं । जो तीनों लोकोंके अधिपतियोंपर विजय प्राप्त करनेका प्रतीक है । इसका अर्थ है कि यशोवतीके जो पुत्र उत्पन्न होगा, वह प्रभुताके उन सारे चिह्नोंको पराभूत कर देगा कि जो अभी तक राजा धारण करते थे । 5. 70 छोटा कीड़ा । 6. 13a प्लासिक काम । 7. पर्वत, जिसके स्तनोंकी जगह स्थित है । पृष्ठ 428 9. 70 करेवा पूर्वकालिक क्रियाका रूप बनानेके लिए हेमचन्द्रका IV, 438 देखिए । तीन सालके पुराने जवके लिए 'अज' कहते हैं, जो बलिमें चढ़ाये जाते हैं । जिन - प्रतिमाका पूजन | जैनोंके अनुसार उनका धर्मका कोई प्रारम्भ नहीं है, वह अतीतमें भी था । 11. 86 चार व्यसन हैं- द्यूतक्रीड़ा, स्त्री, शराब और शिकार । 12. अत्यन्त पासका एक पड़ोसी मित्र होता है और दूसरा शत्रु । अठारह तीर्थ । सेनापति, गणक, मन्त्री, पुरोहित, बलौध, बलवत्तर, दण्ड, नाथ, आर्य इन तीर्थोका उल्लेख करते हैं । ५९ Jain Education International ४६५ For Private & Personal Use Only श्रेष्ठी, महत्तर, महामात्य, अमात्य, www.jainelibrary.org

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