Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 547
________________ अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद 9. la इन लेखकोंके लिए पृष्ठके नीचे देखिए, और साथ ही णायकुमार चरिउका XXIII | 13 6 कुड़वके द्वारा समुद्रको कौन माप सकता है ? 17 परोक्षमें मुझे क्यों कुछ कहना चाहिए ! मैं लोगोंको अपनी रचनाकी कमियोंको बतानेकी खुली चुनौती देता हूँ। पृष्ठ 420 10. कवि गोमुख यक्ष और योगिनी चक्रेश्वरीसे सहायताकी प्रार्थना करता है। जो (यक्ष) ऋषभ 'जिनके शासनदेवता हैं और (चक्रेश्वरी) विद्याकी देवी है। 10. 14 कौन मेरी रचनापर भौंकता है ? 11. मगध देशको स्थितिका वर्णन । 12. राजगृहका वर्णन, जो मगधकी राजधानी है। 12.96 जिसमें ग्वालिनोंके द्वारा मथानीसे मन्थन करते हुए शब्द हो रहा है। ग्वालिनोंकी यह आदत होती है कि वे दही बिलोते समय मधुर गीत गाती है । 13. राजगृहके बाद्य उद्यानका वर्णन । 13. 11: यह सौन्दर्यकी देवीका भण्डारगृह । 14. राजगृह नगरका वर्णन ।। 14. 9 जो कुशासनके कारण अज्ञानी है। 15. राजगृहका वर्णन जारी है। 16. राजा श्रेणिकका वर्णन । 18. राजा श्रेणिकको भगवान् महावीरके आनेकी सूचना मिलती है । 18.66 देवोंके चार निकाय । भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक | Ta चौंतीस अतिशय, अर्हतोंको चौंतीस अतिशय होते हैं जिनका हेमचन्द्र के अभिधान कोश तथा दूसरे ग्रन्थोंमें वर्णन है । कुमारी जानसनके द्वारा अनूदित त्रिषष्ठीशलाकापुरुषका पृष्ठ 5 देखिए। 9 अहंतोंके आठ प्रातिहार्य होते हैं, अशोक, सुरपुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनि, चामर, सिंहासन, भूमण्डल, दुन्दुभि, और त्रिछत्र । 10 6 विपुल गिरि राजगहकी एक छोटी-सी पहाड़ी है। 15 सन्धिकी अन्तिम पंक्तिमें अपना नाम जोड़ता है ( पुफ्फयन्ततेयाहिय) इस प्रकार यह उसका चिह्न है, और उसकी कई तरहसे क्याख्या की जाती है। ज्यादातर उसका अर्थ सूर्य और चन्द्र होता है। पुष्पदन्तकी समानता कभी पुष्पदशन और कूसमदशनसे की जाती है। 'भर एक अर्थ भारतवर्ष या भरत भी होता है, जो पहले चक्रवर्ती हैं। पृष्ठ 421 ... [राजा श्रेणिक, महावीरके आगमनका समाचार सुनकर अपने परिवारके साथ उनके दर्शनके लिए जाता है। जिनवरकी वन्दना-भक्तिके बाद राजा, उनके गणधर गौतमसे महापुराणका वर्णन करनेके लिए कहता है। गणधर कहते हैं। तब गौतम, समयविभागका वर्णन करते हुए अपना कथन प्रारम्भ करते हैं; कुलकरोंका और विश्व सभ्यताके प्रति उनके प्रदेयका वर्णन । इन कुलकरोंमें नाभिराजा पहले थे। मरुदेवी उनकी रानी थी। इन्द्रको याद आया कि जिनवरका जन्म कुलकर नाभिराज और मरुदेवीके घर होना है, इसलिए सोपवरको आदेश दिया कि वह अयोध्या नगरीकी रचना करे। वह इतनी समृद्ध और प्रसन्न हो कि जिससे वह जिनवरके जन्मका उचित स्थान सिद्ध हो सके ।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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