Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 459
________________ १६. २१.९] हिन्दी अनुवाद ३७३ रूपी सुअरों और रथवररूपी छकड़ोंके जो भी महारथी मनुष्य हैं, उनको मैं मारूंगा ? भरत मेरे भुजाभरका क्या अपहरण करेगा ? वह तभी बच सकता है कि जब जिनवरकी याद करता है ? धत्ता - उसकी धरती और मेरा पोदनपुर नगर, दोनों आदिजिनेन्द्रने दिये । यदि वह स्वीकार किये हुएको नहीं मानता, तो वह तलवार से लड़ता हुआ, अग्निकी ज्वालामें पड़ेगा ? ॥१९॥ २० तब दूत ने कहा, "हे कुमार, यह अप्रिय क्या कहते हो ? भरतके द्वारा प्रेषित पुंखविभूषित तीर दुर्निवार होंगे? पत्थरसे क्या सुमेरु पर्वत दला जा सकता है ? क्या गधे से हाथी स्खलित किया जा सकता है ? जुगुनूके द्वारा क्या सूर्य निस्तेज किया जा सकता है ? क्या घूँटसे समुद्र सोखा जा सकता है, गोपदसे क्या आकाश मापा जा सकता है ? अज्ञानसे क्या जिनको जाना जा सकता है, कोएके द्वारा क्या गरुड़ रोका जा सकता है ? नवकमलसे क्या वज्रको वेधा जा सकता है ? हाथी के द्वारा क्या सिंह मारा जा सकता है ? क्या बैलके द्वारा बाघ विदीर्ण किया जा सकता है ? क्या मनुष्यके द्वारा काल कवलित किया जा सकता है ? मेंढकके द्वारा क्या सांप डसा जा सकता है, क्या कर्मके द्वारा सिद्धको वशमें किया जा सकता है ? क्या विश्वाससे लोकको आहत किया जा सकता है ? क्या तुम्हारे द्वारा भरत नराधिप जीता जा सकता है । धत्ता-हो-हो, बकनेसे क्या समर्थ हुआ जा सकता है ? राजा तुम्हारे ऊपर आक्रमण करता है, करवालों शूलों और सब्बलोंके द्वारा सबेरे तुमसे खांगण में मिलेगा ||२०|| २१ तब कामदेव बाहुबलि युक्तिके साथ कहता है- " चाहे यहाँ, या और कहीं विश्व में जो कलह करनेवाले और दूसरोंका धन अपहरण करनेवाले हैं, वे ही राजा हुए हैं ? बूढ़ा सियार शिवकी बात करता है, जैसे यह मुझे हंसी प्रदान करता है, जो बलवान् चोर है, वह राजा है, और जो निर्बल हैं वे निष्प्राण कर दिये जाते हैं । पशुके द्वारा पशुका मांस अपहृत किया जाता है और मनुष्यके द्वारा मनुष्यके धनका अपहरण किया जाता है। रक्षाको आकांक्षासे व्यूह रचकर, एककी आज्ञा लेकर वे राजा निवास करते हैं । लेकिन यह बात त्रिलोक में गवेषित है कि सिंहका कोई समूह दिखाई नहीं देता । मानभंग होनेपर मर जाना अच्छा है, जीना नहीं ।" हे दूत, यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती है । भाई आये, मैं उसे आघात दिखाऊंगा और सन्ध्याराग की तरह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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