Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 463
________________ १६. २५. १२ ] हिन्दी अनुवाद ३७७ घत्ता-पुनः अशेष भुवन सन्ध्यारागसे आरक्त दिखाई देता है, मानो पहाड़ों, घाटियों, नदियों और नन्दनवनोंके साथ वह लाक्षारसमें डुबा दिया गया हो ।।२३।। २४. क्षमारूपी रसको सोख लेनेवाला, तापसोंका नाशक, युवतियोंको पीड़ित करनेवाला मदनराज चूंकि मनुष्यमनमें नहीं समाता हा, मानो दिशाओंमें दौड़ रहा है। सन्ध्यारागरूपी जो आग घूम रही थी, उसे अन्धकाररूपी जलतरंगोंके द्वारा शान्त कर दिया गया, जिस सन्ध्यारागरूपी केशरकी आशंका की गयी थी, उसे तमःसमूहरूपी सिंहने ढक दिया। सन्ध्यारागरूपी जो वृक्ष खिला हुआ था उसे अन्धकाररूपी गजराजने उखाड़ डाला, चन्द्रमारूपी मृगेन्द्रने अन्धकाररूपी गजको भगा दिया। क्या जाने वह उसीको लग गया जो मृगलांछनके रूपमें शुभ करनेवाला दिखाई देता है । तल्पवेशमें जो शत्रुओंको अच्छा लगता है। गवाक्षोंसे प्रवेश करता है, स्तनतलपर गिरता है, शशिका तेज अनेक हारोंके समान दिखाई देता है, अन्धेरेमें रन्ध्राकार दिखाई देता है. और मार्जारोंके लिए दधकी आशंका उत्पन्न करता है, उससे ( चन्द्रमा) रतिका प्रस्वेदजल उज्ज्वल दिखाई देता है, जो मानो सर्पिणीके मोतीके समान जान पड़ता है। कहीं पर घरमें दीर्घ आकारमें प्रवेश करता हुआ किरण-समूह दीख पड़ता है, मयूरने उसे सफेद सांप समझकर किसी प्रकार झपटकर खाया भर नहीं। घत्ता-गंगा नदी, हंसोंके पक्षदल और प्रियसे विरहिताओंके गण्डतल एक तो धवल थे ही, परन्तु चन्द्रमाकी किरणोंसे प्रक्षालित होकर वे और भी धवल हो उठे ।।२४|| २५ अपने मन में कामदेवका जाप करते हए कामसे कांपते रा प्रणयसे विनीत रतिरस और हर्षसे रंजित, रमणशील प्रियसे प्रियतमा रातमें रमण करती है। किसीने सघन स्तनपर अपना करतल रख दिया, मानो स्वर्णकलशपर लाल कमल हो। किसीके द्वारा कोई सुभग (प्रिय ) आलिंगित किया गया, और बलपूर्वक मुख चुम्बन मांगा गया। प्रतिवधू ( सपत्नी) के कारण क्रोध उत्पन्न होनेके कारण बाहर जाती हुई किसीको किसीने करपल्लवमें पकड़ लिया। प्रणयकलहमें रमणी चरणमें पड़ा हुआ कोई केशर सहित पैरसे आहत किया गया। थोड़ी देरके लिए शत्रुके रूपमें शंकित किया गया कोई विट शोभित है, मानो वह कामदेवको मुद्रासे अंकित हो। शयनतलमें हारसे बंधी हुई कोई प्रिया, स्वामी द्वारा चम्पकमालासे ताडित की गयी। बिम्बाधरोंके रसरूपी घोसे सींची गयी किन्हींकी कामाग्नि भड़क उठी, जिसे रतिरूपी जलके प्रवाहसे शान्त किया गया। किसीने उत्साहसे किलकिंचित् किया। कोई रतिके अवसानमें श्रमसे खिन्न चन्दनकी कीचड़की बावड़ीमें लीन हो गयी। कोई गुणो किसीको शपथोंसे समझाता है कि दूसरीकी प्रणयिनी मेरे लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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