Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 490
________________ ४०४ महापुराण [१८.७.१ णत्थि उवाणहाउ सयणासणु मुक्कउं छत्तु असेसु विहूसणु । विसहइ दसमसयसीउण्हई छुहजणदुव्वयणाई संयण्हई । चरिय णिसेज्ज सेज्ज रइ अरइ वि वहबंधण गयजण वणवसइ वि। सीह सरह तणु लग्ग ण वारइ मुणि जच्चिण्णेहि चित्तु ण पेरइ । जल्लमलेहिं मि लित्तउ अच्छइ वउसक्कारु किं पि ण समिच्छइ । असुहसुहेसु समत्तणु मण्णइ विविहातंक रोय अवगण्णइ । लोयकएहिं ण मुज्झइ दोहिं मि सक्कारेहिं पुरक्कारेहिं मि। अहंसण अलाहु रिसिसारउ । पण्णपरीसह सहइ भडारउ । वयसमिर्दिदियरंभणु लोउ वि च्चेलकावासयजोउ वि । पहाणविवज्जणु महिसंसोवणु , दंतोधोवणु कयठिदिभोयणु । घत्ता-वणि णिवसइ दुक्खसयई सहइ ण चवइ थोवउ जेंवइ ।। परमित्ति करइ णिद्द वि जिणइ मणु वेरग्गें भावइ ॥७॥ एम चरंतु चरित्तु सुदुच्चरु महि विहरंतु पइठु वणंतरु । तहिं थिउ एक्कु वरिसु लंबियकरु वेल्लीवलयहिं वेढिउ णं तरु । जासु अंगि पयघट्टियसिंगह कंडुविणोउ सरइ सारंगहं । जासु वच्छि फणिमणि पविराइउ बहुसो विसहरेहिं हाराइउ । जासु गत्तु कयमयजलण्हवणउं जायउ करिहिं करडकंडुयणउं । चरणंगुठ्ठयणक्खि णिहिज्जइ सरहलु वणयरणरहिं णिसिज्जइ । देहि चडंति जासु सुरघरिणिहिं उलूरिय लय णहयरतरुणिहिं । तणुकंतीइ जासु हयछाया हंस वि हरियवण्ण संजाया। जासु रत्तकंदासिइ वट्टइ पण्हिय सूयरु घोणइ घट्टेइ । घत्ता-आसण्णइं जासु मुणीसरहो तवपहावउवसंतई ॥ करि केसरि उलई फणिउलई सह हिंडंति रमंतई ॥८॥ एक्कहिं दियहि पउत्तु सपत्तिइ थुणइ णराहिउ पयपडियल्लउ पई कामें अकामु पारद्धउ तासु भरहु गउ वंदहत्तिइ । पई मुएवि जगि को वि ण भल्लउ । पई राएं अराउ कउ णिद्धउ । ७. १. MBP सतण्हइं; T सयण्हई । २. B जच्चिहे । ३. MBP अहंसणु । ४. M अच्चेलक्क आवासय जोइ वि; B अच्चेलक्क पवासयजोउ वि । ५. MP दंताधोयणु; B दंताभोयणु । ८. १. BP सुदुद्धरु । २. MBP णं वेडिउ । ३. MBPK कंदासइ। ४. MB घोणे; P घोणिहि । ५. B घुट्टइ। ९. १. BP भत्तिइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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