Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 497
________________ १८. १४.१२] हिन्दी अनुवाद ४११ जन्म और मृत्युके प्रेम और भयको नष्ट करनेवाले भावोंमें उत्पन्न होनेवाले अन्धकारको शान्त करते हुए, एकदेशचरित्र और सकलदेशचरित्र प्रदान करते हुए, भव्यरूपी कमलोंको सम्बोधित करते हुए, चरणकमलोंमें इन्द्रको झुकाते हुए, सुनन्दानन्दन पापसे पराङ्मुख बाहुबलि भूमिपर विहार करते हुए कैलास पर्वतपर गये। अपने पिताके समवसरणमें सम्मुख बैठे हुए पापको नष्ट करनेवाले हे बाहुबलि मुझे ज्ञान और समाधि प्रदान करें। तब भाईके ज्ञानलाभसे सन्तुष्ट और नरनारीजनके द्वारा देखे गये भरतने अयोध्या नगरीमें प्रवेश किया और अपने वक्षःस्थलके समान ऊँचे सिंहासनपर बैठ गया । बजते हुए जयविजय वाद्यों, गाये जाते हुए नारद तुम्बुरुके गीतों, दिखाये जाते हुए धरतीके ऋद्धि विभागों, उर्वशी और रम्भाके नृत्य विनोदोंके साथ एकत्रित हुए राजाके पक्षसमूहोंके द्वारा लाखों मंगल-कलशोंसे उसका अभिषेक किया गया। पत्ता-अनिन्द्य शरीरपर चौसठ लक्षण और बहुत-से व्यंजन चिह्न थे, जो समस्त भारतनरेश्वरोंका बल था, उतना बल अकेले भरतराजके पास था ॥१३॥ १४ जिसका रंग तपे हुए स्वर्ण और सूर्यके समान था, जिसका शासन चक्र और लक्ष्मीको शोभा धारण करता था, जिसका शरीर वज्रवृषभ नारायण बन्ध और समचतुरस्र संस्थानवाला तथा कान्तिसे समृद्ध था। पुण्यके प्रभावसे उसने अतुलको प्राप्त कर लिया और छह खण्ड धरती भी सिद्ध हो गयी। साठ हजार सुदेश थे, बहत्तर हजार श्रेष्ठ नगर थे। निन्यानबे हजार द्रोणामुख गांव थे और अड़तालीस हजार पट्टन थे। सोलह हजार खेड़े और निश्चित रूपसे संवाहन, धान्यके अग्रभागोंके भारसे दबे हुए क्षेत्रवाले छियानबे करोड़ उत्तम गांव थे। सात सौ रत्नोंको खदानें, उनमें से पांच तो दूसरोंका उपहास करनेवाली, अट्ठाईस हजार समृद्ध वनदुर्ग थे और छप्पन अन्तरद्वीप सिद्ध हुए । अठारह हजार म्लेच्छ राजा और बत्तीस हजार माण्डलीक राजा। __घत्ता-म्लेच्छ नराधिपोंके द्वारा दी गयी बत्तीस ( दो और तीस) फिर बत्तीस हजार और भी अत्यन्त अनूपम लावण्यवती, अविरुद्ध म्लेच्छ राजाओंके द्वारा दी गयीं बत्तीस हजार स्त्रियोंसे युक्त था ॥१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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