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१८. ६.१६]
हिन्दो अनुवाद
"सज्जनकी करुणासे सज्जन द्रवित होता है।" यह सुनकर भरतानुज वाहुबलि कहता है"जब मैं शैशवमें तुम्हारे साथ खेलता था, तब क्या तुमने मुझे नहीं उठाया था। मेरा और तुम्हारा कौन-सा पराभव । मेरा-तुम्हारा कौन-सा महायुद्ध । जितने भी लोग गये हैं वे बहानेकी खोज करके गये हैं. उनको भोग ऐसे लगे जैसे विष हो। वहाँ भी तम्हारा कोई दोष नहीं है, तम जगमें महान् और वन्दनीय हो। यदि इस समय तुम धरतीकी इच्छा नहीं करते तो जिसने तुम्हें यह दी है, वह उसीको दो।" उस अवसरपर मन्त्रियोंने मना किया, और भूमिनाथको अपने शब्दोंमें सम्बोधित किया। महाबलि अपने पुत्रको परम्परामें स्थापित कर चले गये और कैलासपर जा पहुंचे।
घत्ता-नरेन्द्रश्री और धरतीको छोड़ते हुए और वनको जाते हुए महान् अभिमानी विषण्णमन राजा भरतको मन्त्रियों द्वारा बलपूर्वक अयोध्या ले जाया गया ॥५॥
यह कैलास पर्वतपर अत्यन्त दूरसे सिरसे प्रणाम करते हुए बाहुबलीश्वरने निष्ठामें निष्ठ, अनिष्टका नाश करनेवाले, दुष्ट आठ कर्मोंके नाशक जिनवरको देखा। बड़ी-बड़ी दाढ़ों-ओठोंवाले क्रोधी और पापियों, अधोमुख बैठे हुए घमण्डियों, कुण्ठित प्रमाणवादियों और मांस खानेवाले, मद्य पोनेवाले चाण्डालोंके द्वारा जो नहीं देखे जाते, ऐसे जिन भगवान्को शब्दोंसे निकलती हुई जयजयकार ध्वनि करनेवाले कुमारने स्तुति की-“हे देव, क्रोध तुम्हारे क्रोधसे ध्वस्त हो गया, राग भी मैं जानता हूँ सन्ध्यासे जा लगा, दोष भी तुम्हें छोड़कर चन्द्रमामें स्थित हो गया है, वह उसमें कलंकके रूपमें दिखाई देता है। तुम्हारी ध्यानरूपी अग्निके भयसे नष्ट हुआ मोह औषधियोंमें प्रवेशकर गया है। तुमने शत्रुसंगमको बढ़ानेवाले, सबके (स्वर्णादि के ) प्रति लोभ बढ़ानेवाले लोभको सन्त्रस्त कर दिया है । कामदेवके दर्पको तुमने नष्ट कर दिया, और कालके ऊपर कालको धुमा दिया। आप परिग्रहको नहीं चाहनेवाले निर्ग्रन्थ हैं, आप तपके नियममें स्थित और पथप्रदर्शक हैं। विद्यारूपी नावसे तुमने जन्मरूपी समुद्रको लांघ लिया, तुमने रवि, हरि, शिव और ब्रह्माको पार कर लिया।" इस प्रकार भारी भक्तिसे वन्दना कर मिथ्यादुष्कृतियोंको बुरा-भला कह और निन्दित कर, जैसे संसाररूपी वृक्षके मूलको उखाड़नेके लिए अपने सिरके बालोंको उखाड़कर
घता-उन्होंने अपने पांचों बाण डाल दिये, काम और रति दोनोंको छोड़ दिया, और जिनसे इन्द्र चरणोंमें आकर पड़ता है, ऐसे पांच महाव्रतोंको उन्होंने स्वीकार किया ।।६।।
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