________________
१७. ३. १३ ] हिन्दी अनुवाद
३८३ वशसे ले आना।" कोई वधू कहती है-"यह स्वच्छ हार क्या तुम्हारे प्रसादसे मेरे पास नहीं है ? तुम्हारे हाथकी तलवारके द्वारा उखाड़े गये और शत्रुगजोंके कुम्भस्थलोंसे गिरे हुए मोतियोंसे कुसुमित अंगोंवाली में कीर्तिलताकी तरह शोभित होऊँ, तुम मुझे यह भंगिमा दिखाओ।" कोई वधू कहती है-"महिमाका हरण करनेवाले चीर या हाथसे मुझे हवा क्यों करते हो? हे प्रिय रजश्रम और स्वेदका हरण करनेवाला शत्रुका चामर ले आना।" कोई वधू कहती है-"तुम अभिमानी शत्रुपक्षके स्वामीसे लड़ना। छोटे आदमीको मारनेमें कोई लाभ नहीं, यही कारण है कि राहु नक्षत्रगणोंसे रुष्ट नहीं होता। वह इसीलिए सूर्यसे लड़ता है, इसीलिए चन्द्रमासे लड़ता है, बलवान्के मारे जानेपर यश चन्द्रमापर चढ़ता है। कोई वधू कहती है कि निशंक दुष्टोंको सतानेवाले ही जय प्राप्त करनेवाले होते हैं। . घत्ता-जिस कविने सुन्दर काव्यमें और भटने महासुभटोंके युद्ध में अपने सरल पदउद्यत पद दिये हैं उसीकी कीर्ति महीमण्डलमें घूमती है ॥२।।
तब राजाके आदेशसे अनुचरोंके हाथोंसे आहत विपक्षको सन्त्रस्त करनेवाले लाखों रणतूर्य बज उठे। ऐरावत प्रलयमेघ और समुद्रके स्वरोंवाले धगधग गिदुगिदु गिगि करते हुए आघात दिये जाने लगे। पटु-पटह और मृदंगके महाशब्दोंका कोलाहल हो रहा था, किंकरोंके हाथोंसे धुमाये हुए सुन्दर ताल होने लगे, मुंहकी हवासे तुर-तुर करते हुए काहलोंका कोलाहल होने लगा, गूंजती हुई भेरियोंके साथ हल-मूसलोंके बोल होने लगे। बिजलीके गिरनेसे तड़तड़ करते हुए विशाल करट और टिविलि ( बज उठे)। बजती हुई झल्लरियोंके स्वरसे पर्वत उखड़ने लगे। निश्वासोंके भारसे पूरित विमल और श्रेष्ठ शंखयुगल हू-हू-हू करने लगे। और भी, जय-विजय श्रीकामिनी और सुखको आकांक्षा रखनेवाले और भी असंख्य शंख बजा दिये गये। शब्द करते हुए रुंज-शंख, भें-में करते हुए भेभा शंख बज उठे। नाग, मही, समुद्र और मेघोंको हिलाती हुई कवचोंसे शोभित सेनाएं चलीं। योद्धाओंके द्वारा मुक्त अश्वखुरोंसे धरतीका अग्रभाग आहत हो उठा। चंचल धूलिसे कपिल रंगकी तलवारें चमक रही थीं। बलमें श्रेष्ठ योद्धा मिले हुए और मण्डलाकार थे। हाथमें भाले लिये हुए पैदल सिपाही दौड़ रहे थे। रथोंके चक्रोंकी चिक्कारोंसे भुजंग भयभीत हो उठे। नृपछत्रोंकी छायासे सूर्य आच्छादित हो गया। जो यक्षेन्द्रों, विद्याधरेन्द्रों और मानवेन्द्रोंसे भयंकर और क्षयकालकी क्रीडाको अपनी क्रीड़ासे विराम देनेवाली थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |