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१७. ९.६] हिन्दी अनुवाद
३८९ चरित बढ़ने लगे । शीघ्र ही म्यानोंसे तलवारें निकाल ली गयीं, शीघ्र ही चक्र हाथसे चलाये जाने लगे, शीघ्र ही भृत्योंके द्वारा सेल धुमाये जाने लगे। शीघ्र ही भाले सामने धारण किये गये, दिशाओंके मुख धुएंसे अन्धे हो गये। शीघ्र ही मुट्ठीमें लकुटदण्ड ले लिये गये, शीघ्र ही पुंख सहित तीर डोरीपर चढ़ा लिये गये। शीघ्र ही महावतोंके पैरोंसे हाथी प्रेरित कर दिये गये। शीघ्र ही घुड़सवारोंसे तुरंग चला दिये गये।
पत्ता-शीघ्र ही धरतीके लिए सेनाएं जबतक एक दूसरेपर आक्रमण करती हैं तबतक अपने हाथ उठाकर मन्त्री उन दोनोंके भीतर प्रविष्ट हुए और बोले ॥७॥
"दोनों सेनाओंके बीच जो बाण छोड़ता है, उसे श्री ऋषभनाथकी शपथ ।" यह सुनते ही सेनाएं हट गयीं और चढ़े हुए धनुष उतार लिये गये। यह सुनकर हर्षसे आपूरित बजते हुए तूर्य हटा लिये गये। यह सुनकर धाराओंका उपहास करनेवाली तलवारें म्यानके भीतर रख ली गयीं। यह सुनकर चमकते हए सघन कवच-निबन्धन खोल दिये गये। यह सुनकर मतवाले प्रतिगजोंकी वरगन्धसे लुब्ध और क्रुद्ध गज अवरुद्ध कर लिये गये। यह सुनकर ईर्ष्याभावसे भरे हुए फड़फड़ाते हुए अश्व रोक लिये गये। रथ रह गये, लगाम खींच ली गयी। बेधते हुए अनेक योद्धाओंको मना कर दिया गया।
पत्ता-युद्धकी साज-सामग्रीको दूर हटाती हुई, गुरुजनोंकी शपथसे रोकी गयी दोनों सेनाएं कलकल शब्दको छोड़कर इस प्रकार स्थित हो गयीं, जैसे दीवालपर चित्रित कर दी गयी हों ॥८॥
अपने सिरोंसे प्रणाम करते हुए, दोनों हाथ जोड़े हुए, उत्पन्न होते हुए क्रोधको शान्त करते हुए मन्त्रियोंने मधुर शब्दोंमें दोनोंसे निवेदन किया, "आप दोनों चरमशरीरी हैं, आप दोनों विजयलक्ष्मीके घर हैं, आप दोनों अस्खलित प्रतापवाले हैं, आप दोनों गम्भीर वाणीवाले हैं, आप दोनों विश्वको धारण करनेकी शक्तिवाले हैं, आप दोनों ही रमणियोंके लिए सुन्दर हैं, आप
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