Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 477
________________ १७.११.८] हिन्दी अनुवाद ३९१ दोनों देवोंसे भी प्रचण्ड हैं, आप दोनों धरतीरूपी महिलाके बाहुदण्ड हैं। आप दोनों राजाके न्यायमें कुशल हैं, आप दोनों अपने पिताके चरणरूपी कमलोंके भ्रमर हैं, आप दोनों ही जनताके नेत्र हैं। इसलिए आप हमारे पक्षको पसन्द करें। तीखे आयधोंकी धारसे विदीर्ण अनुचर समहके मारे जानेसे क्या ? उन बेचारोंको दण्डित करने और नारी समूहको विधवा बनानेसे क्या ? दोनोंके बीच मध्यस्थ होकर आयुध छोड़कर और क्षमाभाव धारण करें। ____घत्ता-हे राजन्, देखिए और युक्तियुक्त कहा हुआ इतना कीजिए। तुम दोनोंमें धर्म और न्यायसे नियुक्त तीन प्रकारका युद्ध हों ॥९॥ १० पहला-एक दूसरेपर दृष्टि डालो, कोई भी अपने पक्षमकी पलकोंको न हिलाये, दूसराइंसावलीके द्वारा सम्मानित पानीके द्वारा एक दसरेको सींचो, तीसरे-आकाशमें देवता और जिस प्रकार ऐरावत सूडको पकड़ता है, आप दोनों राजमल्ल तबतक मल्लयुद्ध करें कि जबतक एकके द्वारा दूसरा हरा न दिया जाये। पराक्रमसे एक दूसरेको जीतकर पराक्रमसे कुलगृह-श्रीको ग्रहण करें।" तब अपने शरीरको शोभासे इन्द्रका उपहास करनेवाले दोनों सुन्दरोंने अपने मनमें विचार किया कि अनिष्ट करनेवाले नवयौवनसे क्या ? फले हुए कड़ वे वनसे क्या ? चाण्डालसे अलंकृत जलसे क्या ? आदेशसे शंकित रहनेवाले दाससे क्या, गुरुसे प्रतिकूल और अत्यन्त विनीत सुजन शिरको पीड़ा पहुंचानेवाले राजासे क्या ? घत्ता-जो मन्त्रियोंके द्वारा भाषित, सुभाषित और नीतिवचन नहीं करते उन राजाओंकी ऋद्धि कहाँ, और सिंहासन, क्षत्र एवं रत्न कहाँ ? ॥१०॥ ११ यह विचारकर उन्होंने मन्त्रीकी मन्त्रणा पसन्द की। वृद्धाश्रित सब कुछ उत्तम होता है। लाल, सफेद एवं श्वेत लोचनवाले परिजनोंने क्रोधका आलम्बन नहीं लिया। कषायभावसे वे एक दूसरेके निकट पहुँचे, दोनोंने एक दूसरेको देखा। राजा भरत ऊंचा मुख किये बाहुबलिका मुख देखता है. जैसे किरण प्रचण्ड रविबिम्बको देखता है। ऊपरको अविचलित दष्टिसे नीचेकी दष्टि जीत ली गयी, मानो होती हुई कुगति पांचवीं गतिसे, मानो मुनिवरोंकी मतिसे, विषयाशा मानो, विटकी रतिसे तपस्विनी और मानो गंगानदीसे पर्वतकी दीवार भग्न हो गयी हो। मानो चन्द्रकिरणोंकी परम्परासे कमलपंक्ति, मानो रविको कान्तिसे कुमुदोंकी पंक्ति मुकुलित हो गयी हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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