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१७.५.८]
हिन्दी अनुवाद
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घत्ता - इस प्रकार जब भरताधिप मन्त्रियों और सामन्तोंके साथ निकला, तब वैतालिकों और चारणोंने प्रणाम करते हुए बाहुबलिसे निवेदन किया ||३||
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"हे देव, तुम्हारे ऊपर सैन्यरूपी समुद्र उछल पड़ा है, जो परिजनरूपी जलसे धरती और आकाशको ढकता हुआ, उत्तुंग तुरंगरूपी तरंगोंसे युक्त, हाथीरूपी मगरोंसे अपनी प्रचण्ड सूँड उठाये हुए, श्वेत छत्रों के फेन समूहसे युक्त लावण्य ( सौन्दर्यं ओर खारापन ) के प्रचुर गम्भीर घोषवाला, दुर्गंम चौदह रत्नोंसे अधिष्ठित, रथोंके बोहित्य-समूहसे चपल, पंचांग मन्त्ररूपी पातालसे विपुल, यशरूपी मोतियोंसे त्रिजगरूपी तीरको मण्डित करनेवाला, अपने कुलरूपी चन्द्रको आनन्दित करता हुआ, ध्वजपटोंके जलचरोंसे व्याप्त शरीर, अन्यायरूपी मल समूहको दूर करनेवाला तथा तलवाररूपी मत्स्योंसे भयंकर है ।" तव सुविचित्र पुंखोंसे विभूषित तीरोंवाले बाहुबलीश्वर ने कहा - " ऐसा क्यों कहते हो कि मैं अकेला हूँ और शत्रु बहुत हैं ? क्या तुम कालके आगे जीवकी गिनती करते हो, क्या आग तरुवरोंके द्वारा जलायी जा सकती है ? क्या नागों के द्वारा गरुड़ खाया जा सकता है ? क्या कामके बाण जिनमनका हरण कर सकते हैं ? सियार सिंहका क्या कर सकते हैं ? क्या नक्षत्रोंके द्वारा सूर्य आच्छादित किया जा सकता है ? प्रवर शत्रु भी मेरा मान मलिन नहीं कर सकता ।
धत्ता - मैं एक भी पैर नहीं हटूंगा, और नागके आकार के तीरोंसे मार्गको अवरुद्ध कर लूँगा । आते हुए राजारूपी समुद्र के लिए में सरवरोंकी कतारोंसे तट बाँध दूँगा” ||४||
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प्रलयसूर्यके समान तेजस्वी श्री बाहुबलीश्वर देव गरजते हुए तैयार होते हैं । अपने बाहुबलकी स्थिरता और बनावट देखकर किसी योद्धाका रोमांच ऊँचा हो गया, उसके हृदय में लोहवंत ( लोहेसे निर्मित और लोभयुक्त ) कवच उसी प्रकार नहीं समा सका जिस प्रकार कापुरुष । जयके अभिलाषी किसीने छुरी अपनी करधनीके सूत्र से बाँध ली । किसीने संग्राम दीक्षाकी इच्छा की और किसीने तीर चलानेकी परम शिक्षाकी । किसीने धनुषकी डोरीको कहीं चांपा, मानो कुटिलभाववाले खलजनको चांपा हो । किसी योद्धाने तरकस युगल इस प्रकार बाँध लिया मानो गरुड़ने अपने पक्षयुगलको दिखाया हो ? किसीने अपनी प्रचण्ड तलवार निकाल ली
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