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१५. २०.३]
हिन्दी अनुवाद
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टाला, यह तुमने अच्छा किया। मुकुटमें उत्पन्न है चूड़ामणि जिसके, ऐसे महादरणीय धरणेन्द्रने पूर्वकालमें जिस प्रकार समर्पित किये थे, उसी प्रकार में भी समर्पित करता हूँ, अपने प्रिय विद्याधर नगरोंका तुम पालन करो ।”
इस प्रकार नमि और विनमीश्वरके द्वारा जिनवरके पुत्र बलवान् और ऋद्धिसे सम्पन्न नरनाथ भरतकी सेवा स्वीकार कर ली गयी ॥१७॥
१८
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वे दोनों त्रिभुवनको कँपानेवाले राजाको प्रणाम कर अपने घर चले गये । लक्ष्मीके स्वामी अपने उन दोनों भाइयोंको भेजकर तथा युद्धमें धीर शत्रुओंको नष्ट कर जिसने शूल, करवाल और हल उठा रखा है और जो हवासे चलते-उड़ते चंचल ध्वजोंवाला है, ऐसा सैन्य चलता है, धरती हिल जाती है। उधर गुहाद्वारमें सैन्य नहीं समाता । नागसमूह काँप उठता है परन्तु कुछ कहता
प्रभु चलता है, देववधू नृत्य करती है । पैर जमाती है, आभरण ग्रहण करती है, घूमती है, साड़ी हिलाती है । हाथी धीरे-धीरे चलता है, ओर शब्द करता है, रथ रुक जाता है, ओर घोड़ा गर्दन टेढ़ी करता है । गजके दान ( मदजल ) और घोड़ेके फेनसे रज शान्त हो जाती है । परन्तु कीचड़ भरे गड्ढे में पैर फँस जाता है ।
घत्ता – वन्दीजनोंके द्वारा पठित जय हो, प्रसन्न रहो, बढ़ो, आदि शब्दोंके घोषों और बजते हुए सहस्रों नगाड़ोंसे गिरिविवर गरजने लगता है || १८ ||
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लोग पीड़ित हो उठते हैं, परन्तु मार्ग समाप्त ही नहीं होता । तब मनुष्यके द्वारा लिखित सूर्य-चन्द्र रख दिये गये, अन्धकारके विकारको नष्ट करनेवाली मट्टिय कठिन कागणीमणिके द्वारा उजला प्रकाश कर दिया गया । स्कन्धावार और वीर भरत पुलकित हो उठा। वह सेतुबन्धके द्वारा क्रमसे चलता है और जलसे भरी हुई नदी पार करता है । उस पर्वतकी गुफासे निकलकर शीघ्र ही वह कैलास गिरीशपर पहुँच गया । सुरसमूहों और विद्याधरोंसे घिरा हुआ निर्झरोंके झरते हुए जलोंसे भरा हुआ भव्य गन्धर्वोके द्वारा सेवित, चंचल अग्निज्वालाओंसे सन्तप्त, हरे वृक्षसमूहों से आच्छादित वानरोंकी आवाजोंसे निनादित -
घत्ता - वह प्रवर महीधर आकाशसे लगा हुआ ऐसा दिखाई देता है मानो धरतीरूपी कामिनीका स्वर्गको दिखानेवाला भुजदण्ड हो ॥ १९ ॥
२०.
जिसकी चट्टानें अप्सराओंके चित्रोंसे लिखित हैं, जिसके विल विषधरोंके शिरोमणियों से आलोकित हैं, जो सिंह शावकोंको सुख देनेवाला है, जिसकी विशाल गुफाएँ सिंहों से प्रसाधित हैं,
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