Book Title: Mahapurana Part 1
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 438
________________ १० १५ संधि १६ पणवेपि णिव रकमकमलु ओयरेवि कइलासहो ॥ साहु मुहुं संचलिउ घरणिणाहु णियवासहो ॥ ध्रुवकं ॥ १ आरणालं - रविणिह कण्णकुंडला रंयणमेहला मउडपट्टधारा । चलिया मंडलेसरा खयरसुरणरा कंठबद्धहारा ॥ १ ॥ होइ गिरित्थलु णिविसें समथलु किण किंण किर संचरिउ वणु किंण किंण संतरु लंघिउ for forपहरणु अवलोइड किणकिण वरवाह वाहिउ कणय दंड मंडियपडिहारे पुरणारिहि आहरणु लइज्जइ कुंकुमेण छडउल्लउ दिज्जइ घिris कुसुमकरं स सँडयणु घरि घरि गाइज्जर जिणणंदणु दप्पणु कलसु धरिज्जइ अण्ण सलहिज्जंतु महंतु सुरिंदहि करिवरकंधरत्थु "मणहारिहि १० किं ण किं ण किर कैद्दमियउं जलु । किं णकिण धूली जायउ तणु । किणकिण दुग्गुवि आसंघिउ । किणकिण पडिसेण्णु णिवाइउ । किणकिण परमंडलु साहिउ । औवेंतें पहुखंधाबारें । देववत्थु परिहिज्जइ । कप्पू रंगावलि किज्जइ । बज्झइ सुरतरुपल्लवतोरणु । दोवेदहियसिद्धत्थय चंदणु । उग्घोसिउ मंगलु सुरकण्णहिं । सहुं क्खिदखगिंदणरिदहि । विज्जिज्जत चामरधारिहि 1 13 घत्ता - महि सयल वि खग्र्गे णिज्जिणिवि कयदिग्विजयविलासहि ॥ उज्झहि "भरहाहि पइसरइ सट्ठिहिं वरिससहासहि ||१|| १४. Jain Education International GMBP give, at the commencement of this Samdhi, the following stanza :प्रतिगृहमटति यथेष्टं बन्दिजनैः स्वैरसंगता वसति । भरतस्य वल्लभा सा कीर्तिस्तदपीह चित्रतरम् ॥ MBP read स्वैरसंगमा for स्वैरसंगता; and वल्लभासौ for वल्लभा सा । K does not give it. १. १ MBP खयरणरसुरा । २. M अवसें; B णिवसें; P णिवसि and gloss निमेषेण; T णिविसें । ३. कद्दावियउं । ४. M संचूलिउ । ५. MBP आवतें । ६. M देवंगु वत्यु । ७. P ससयडणु but gloss सषट्चरणः । ८. MBP घाइज्जइ । ९. MB दुव्व ; P दोव्व । १०. MP दप्पण । ११. M मणिहारिहिं । १२. MBP धारहिं । १३. MBP विलासिहि । १४. MBP भरहेसरु । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560